स्वतंत्रता की अवधारणा की व्याख्या कीजिए तथा ‘नकारात्मक’ और ‘सकारात्मक स्वतंत्रता में क्या अंतर है? – Sab Sikho

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आज हम इस पोस्ट के माध्यम से जानेंगे की स्वतंत्रता की अवधारणा क्या है और हम यह भी जानेंगे कि नकारात्मक और सकारात्मक स्वतंत्रता में क्या अंतर है तो इस पोस्ट को ध्यान पूर्वक होकर पड़े तब आपको अच्छे से जानकारी समझ में आएगी तो चलिए शुरू करते हैं।

स्वतंत्रता की अवधारणा की व्याख्या – नकारात्मक और सकारात्मक स्वतंत्रता में अंतर

स्वतंत्रता की अवधारणा की व्याख्या कीजिए तथा 'नकारात्मक' और 'सकारात्मक स्वतंत्रता में क्या अंतर है? - Sab Sikho
स्वतंत्रता की अवधारणा की व्याख्या कीजिए तथा ‘नकारात्मक’ और ‘सकारात्मक स्वतंत्रता में क्या अंतर है? – Sab Sikho

स्वतंत्रता की अवधारणा की व्याख्या कीजिए

स्वतंत्रता की अवधारणा-स्वतंत्रता का सर्वाधिक उपयुक्त तात्पर्य यह है कि इससे प्रेरणा पाकर कोई विवेकशील व्यक्ति बिना किसी बाहरी दबाव के अपनी इच्छानुसार कार्य कर पाता है। इस प्रकार व्यक्ति के विकास के लिए स्वतंत्रतारग आवश्यक है। कोई व्यक्ति तभी स्वतंत्र माना जाता है जब वह दूसरे लोगों द्वारा प्रतिबंधित या नियंत्रित न हो।

स्वतंत्रता के अभिप्राय यह भी है कि हमें कुछ करने की आजादी मिले या हम अपनी शक्ति का सही उपाय कर सकें। इसके लिए व्यक्ति को सत्ताधारियों की निरंकुशता से मुक्त होना चाहिए। अर्थात् कार्य करने में दण्ड का भय नहीं होना चाहिए, चाहे वह कार्य भले ही किसी के आदेश पर किया जाए। नागरिक कानून द्वारा प्रतिबंधित कार्य नहीं करते, बल्कि कानून के अनुसार कार्य करते हैं, यहाँ भी स्वतंत्रता झलकती है।

नकारात्मक और सकारात्मक स्वतंत्रता में अंतर

नकारात्मक और सकारात्मक स्वतंत्रता में अंतर-

स्वतंत्रता के नकारात्मक रूप का अर्थ है वह स्थिति, जिससे किसी भी प्रकार के बन्धन न हो, कानूनों द्वारा व्यक्ति पर कोई प्रतिबंध न हो तथा मानव अपनी मनमानी करने के लिए स्वतंत्र हो। नकारात्मक रूप का पक्ष लेने वाले विद्वानों का विचार है कि न तो राज्य को ही नागरिकों के कार्यों में हस्तक्षेप करना चाहिए और न ही किसी भी मानव को दूसरे मानव पर दबाव डालना चाहिए।

उदाहरणार्थ, जॉन स्टुअर्ट मिल का स्वतंत्रता से अभिप्राय नकारात्मक स्वतंत्रता से था, क्योंकि उसका कहना था- “व्यक्ति के कामों पर किसी भी प्रकार की रुकावट नहीं होनी चाहिए, वह रुकावट कितनी ही अच्छी क्यों न हो।” स्वतंत्रता के सकारात्मक रूप में विश्वास रखनेवाले विद्वानों के अनुसार स्वतंत्रता को वास्तविक बनाने के लिए इस पर उचित प्रतिबंध आवश्यक है।

उनके अनुसार, राज्य को सबके लिए ऐसे समान अवसर प्रदान करने चाहिए जिनसे व्यक्ति अपना पूर्ण रूप से विकास कर सके। सारांश में नकारात्मक पहलू के अनुसार व्यक्ति के कार्यों में कोई रुकावट नहीं होनी चाहिए जबकि सकारात्मक पहलू के अनुसार व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए कुछ अधिकार तथा अवसर मिलने चाहिए। मिल स्वतंत्रता के नकारात्मक पहलू का पक्ष लेते थे जबकि लास्की सकारात्मक पहलू का ।

नकारात्मक पहलू के अनुसार- जो सरकार कम-से-कम शासन या कम प्रतिबंध लगाती है वही सर्वोत्तम है, जबकि सकारात्मक पहलू के अनुसार यदि सरकार स्वतंत्रता को वास्तविक बनाने तथा समाज या व्यक्ति के हितो तथा व्यक्तित्व के विकास के लिए कानून बनाती है तो वह सर्वोत्तम सरकार कहलाने के योग्य है, अन्यथा नहीं।

आर्थिक, राजनीतिक और नैतिक स्वतंत्रता

राजनीतिक स्वतंत्रता का अर्थ राजनीतिक स्वतंत्रता वह स्वतंत्रता है जिसमें नागरिक अपने शासन को चलाने के लिए चुनाव में भाग लेते हैं, सभी नौकरियों में बिना रंग-रूप, जात-पात, धर्म -लिंग के भेदभाव के पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करते हैं। लास्की ने लिखा है “राज्य के कार्यों में भाग लेने के सक्रिय अधिकार को राजनीतिक स्वतंत्रता कहते हैं।”

इसी प्रकार गिलक्राइस्ट का कहना है – “राजनीतिक स्वतंत्रता जनतंत्र का दूसरा नाम है।” राजनीतिक स्वतंत्रता प्रायः प्रजातांत्रिक राज्यों में ही देखने को मिलती है। आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ- आर्थिक स्वतंत्रता के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को जीवनयापन के सभी अवसर प्राप्त होते हैं। वस्तुतः जहां व्यक्ति को जीवनयापन की सुविधा नहीं होती है, वहां व्यक्ति की स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं होता।

व्यक्ति हो न हो, अपितु, विदेशी सहायता पर निर्भर राज्यों की आर्थिक सहायता भी सीमित हो जाती है। गरीबी, भुखमरी, बीमारी, अपने बच्चों को शिक्षा देने में असमर्थ व्यक्ति स्वतंत्रता का जीवन व्यतीत करने में असमर्थ होता है।

आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी व्यक्ति ही आर्थिक स्वतंत्रता का उपभोग करता है। नैतिक स्वतंत्रता का अर्थ- प्रजातांत्रिकराज्यों में नैतिक स्वतंत्रता आवश्यक मानी गई है। इसके अन्तर्गत व्यक्तिको सत्य-असत्य, उचित-अनुचित, सही-गलत और नैतिक-अनैतिक केमध्य भेद पहचानने की क्षमता होती है।

इसकेन होने पर नागरिकस्वार्थ, लोभ, मोह, झूठ, चोरबाजारी आदि बुरी प्रवृतियों का शिकार होकर अपना और अपने समाज का नुक्सान कर सकता है और प्रशासन को भ्रष्ट बना सकता है। काण्ट, ग्रीन और गोधी आदि नैतिकस्वतंत्रता के समर्थक हैं।

कानून और स्वतंत्रता के परस्पर संबंधों की चर्चा

स्वतंत्रता और कानून में सम्बंध-कानून और स्वतंत्रता के विषय में प्रायः दो दृष्टिकोण व्यक्त किए जाते हैं। एक दृष्टिकोण कानून को स्वतंत्रता का तथा स्वतंत्रता को कानून का शत्रु मानता है। यह दृष्टिकोण अराजकतावादियों, व्यक्तिवादियों, मार्क्सवादियों, बहुलवादियों तथा श्रम संघवादियों का दृष्टिकोण है। इस दृष्टिकोण के अन्तर्गत कानून तथा स्वतंत्रता सहगामी अवधारणाएं न होकर विरोधी अवधारणाएं हैं।

परन्तु कानून तथा स्वतंत्रता के सम्बन्धों का एक अन्य दृष्टिकोण भी है जो दोनों को एक-दूसरे की सहगामी अवधारणाएं बताता है । इसके अन्तर्गत कानून स्वतंत्रता की रक्षा करता है और स्वतंत्रता कानून के पालन में विश्वास जगाता है । लॉक जैसे विचारक कहते हैं कि “जहां कानून नहीं होते, वहां स्वतंत्रता नहीं होती”।

रूसो का मत है कि ‘कानून को मानना ही स्वतंत्रता का आनन्द लेना है”। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि सभी कानून स्वतंत्रता के रक्षक होते हैं। परतंत्र देश के लिए बने कानून स्वतंत्रता के पोषक न होकर स्वतंत्रता के हनन के साधन बन जाते हैं। कानून और स्वतंत्रता में अंतर-कानून तथा स्वतंत्रता के सम्बन्धों से स्पष्ट हो जाता है कि दोनों अवधारणाएं एक-दूसरे से सम्बंधित हैं।

यह और बात है कि कुछ विचारक इन अवधारणाओं को एक-दूसरे के विरूद्ध तथा कुछ अन्य विचारक इन्हें एक-दूसरे की पूरक अवधारणाएं मानते हैं। इतना होते हुए भी कानून व स्वतंत्रता के आपसी भेद के तथ्य को भुलाया नहीं जा सकता।

भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मैं अंतर

नागरिक स्वतंत्रता का एक महत्वपूर्ण पक्ष भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। प्रत्येक नागरिक अपने विचार दूसरे तक पहुंचाने के लिए स्वतंत्र है। इस प्रकार की स्वतंत्रता में भाषण, प्रकाशन की स्वतंत्रता तथा सार्वजनिक अभिव्यक्ति शामिल है। इस प्रकार व्यक्ति को अंतःकरण की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।

भाषण और अभिव्यक्तिकी सर्वोत्तम प्रस्तुति यूनान में सुकरात द्वारा दिखाई देती है। उसने इसकी रक्षा के लिए बलिदान दिया था। उसके उपदेश और विचार तत्कालीन सरकार को अच्छे नहीं लगते थे। इसलिए उसे मृत्यु दण्ड दे दिया गया। उसने भाषण और अभिव्यक्ति को उचित ठहराया, परन्तु वह देशद्रोह की स्वतंत्रता के विरूद्ध था।

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