साधारण कानूनों से क्या अभिप्राय है? और हम कानूनों का पालन क्यों करते हैं? – Sab Sikho

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आज किस आर्टिकल में हम जानेंगे साधारण कानून का क्या अभिप्राय है तथा हम यह भी जानेंगे कि हमें कानून का पालन क्यों करना चाहिए? तो आइए जानते हैं कानून के कुछ जरूरी बातें जिन्हें हमें फॉलो भी करने चाहिए।

साधारण कानूनों के अभिप्राय और कानून का शाब्दिक अर्थ (Ordinary Laws and Literal Law)

साधारण कानूनों से क्या अभिप्राय है? और हम कानूनों का पालन क्यों करते हैं? - Sab Sikho
साधारण कानूनों से क्या अभिप्राय है? और हम कानूनों का पालन क्यों करते हैं? – Sab Sikho

साधारण कानून वे कानून हैं जिनके द्वारा देश की सरकार नागरिकों पर शासन करती है। यह देश के विधान मण्डल द्वारा बनाए जाते हैं और कार्यपालिका द्वारा लागू किये जाते हैं। साधारण कानूनों को दो भागों में बांटा जाता है – (1) सार्वजनिक कानून तथा (2) व्यक्तिगत कानून।

(1) सार्वजनिक कानून (Public Laws)- सार्वजनिक कानून वे कानून हैं जिनके द्वारा व्यक्ति तथा राज्य के पारस्परिक सम्बंधों को नियंत्रित किया जाता है।

(2) व्यक्तिगत कानून (Private Laws)- व्यक्तिगत कानून ऐसे कानूनों को कहते हैं जो व्यक्तियों के आपसी सम्बंधों को नियमित करते हैं।

हम कानूनों का पालन क्यों करते हैं? दो कारण

हम कानूनों का पालन निम्न दो कारणों से करते हैं –

(1) कानून राज्य द्वारा निर्मित किये जाते हैं और राज्य द्वारा उन्हें लागू किया जाता है। कानून के पीछे राज शक्ति होती है अर्थात् दण्ड के भय से लोग कानून का पालन करते हैं.

(2) हम कानून का पालन अदालत या स्वेच्छा से भी करते हैं, क्योंकि कानून व्यक्ति के विकास के लिए उचित वातावरण की स्थापना करते हैं।

कानून का शाब्दिक अर्थ समझाइए

कानून को अंग्रेजी में ‘Law’ कहते हैं। इस शब्द की उत्पत्ति ट्यूटोनिक शब्द ‘Lag’ से हुई है जिसका अर्थ है ‘निश्चित’ । इसके अनुसार कानून शब्द का साधारण अर्थ हुआ – वह तथ्य जो स्थिर या निश्चित है।

राजनीति विज्ञान में उन नियमों को ‘कानून’ का नाम दिया गया है जो सरकार द्वारा निश्चित करके लागू किए गए हैं और जिनका उल्लंघन दण्डनीय होता है।

कानून का मार्क्सवादी दृष्टिकोण बताइए

मार्क्स के अनुसार कानून राज्य में शासन करनेवाले वर्ग की इच्छा है। इस प्रकार कानून की प्रकृति का राज्य की प्रकृति से घनिष्ट सम्बन्ध होता है। कानून राज्य के लोगों की इच्छा अभिव्यक्त नहीं करता। कानून सामाजिक न्याय की स्थापना भी नहीं करता।

कानून तो केवल राज्य रूपी यंत्र (Tool) के सहारे पूंजीपतियों द्वारा श्रमिकों का शोषण रोकने के लिए बनाए जाते हैं। लेनिन ने कहा है- कानून राजनीति है। साम्यवादी देशों में कानून वर्गीय तथा सर्वहना कानून के रूप में माना जाता है।

कानून के किन्हीं दो स्रोतों का वर्णन करो

कानून के विविध स्रोत होते हैं, इनमें मुख्य स्रोत रीति-रिवाज, धर्म, न्यायिक निर्णय, न्याय भावना, टीकाएं तथा विधानमण्डल आदि हैं। इनमें से दो का वर्णन निम्न प्रकार हैं-

(1) रीति-रिवाज और परम्पराएं (Customs and Traditions) – रीति-रिवाज और परम्पराएं कानून का प्राचीनतम स्रोत हैं। प्रत्येक राज्य अपने कानूनों का निर्माण करते समय इन रीति-रिवाजों और परम्पराओं का ध्यान रखते हैं। भारत में ‘हिन्दू लॉ’ तथा ‘मुस्लिम लॉ’ और इंग्लैंड में ‘कॉमन लॉ’ रीति-रिवाजों पर ही आधारित हैं।

(2) धर्म (Religion) – कानून का दूसरा महत्वपूर्ण स्रोत धर्म है। धार्मिक नियमों को कानून का रूप दे दिया जाता है। भारत में विवाह तथा उत्तराधिकार से सम्बन्धित कानून ‘मनुस्मृति’ पर तथा मुस्लिम देशों के अधिकार व कानून ‘कुरान’ पर आधारित हैं।

संवैधानिक कानून (Constitutional Law) तथा संविधि कानून (Statutes) में अंतर

संवैधानिक कानून वे कानून हैं जो किसी राज्य की शासन-व्यवस्था को निश्चित करते हैं। ये लिखित अथवा अलिखित दोनों प्रकार के होते हैं। ये साधारण कानूनों से उच्च होते हैं। इनका निर्माण एक संविधान सभा द्वारा किया जाता है। इनमें संशोधन किसी विशेष विधि के द्वारा ही किया जा सकता है।

संविधि कानून वे कानून हैं जिनके द्वारा सरकार नागरिकों पर शासन करती है। ये कानून विधानमंडल द्वारा बनाये जाते हैं ?

प्रशासकीय कानून से क्या अभिप्राय है?

प्रशासकीय कानून वे कानून होते हैं जो सरकारी अधिकारियों की स्थिति तथा उत्तरदायित्व को निश्चित करते हैं। यदि सरकारी अधिकारी अपने कर्त्तव्य-पालन में किसी प्रकार की उपेक्षा करते हैं तो उन पर प्रशासकीय कानून लागू होता है।

उनकी सुनवाई साधारण न्यायालयों में न होकर प्रशासकीय न्यायालयों में होती हैं। हमारे देश में इस प्रकार के कानून प्रचलित नहीं हैं। फ्रांच में प्रशासकीय कानून प्रचलित हैं।

अध्यादेश (Ordinance) किसे कहते हैं?

अध्यादेश वे कानून होते हैं जो किसी विशेष स्थिति पर काबू पाने के लिए राज्य – अध्यक्ष (राज्यपाल अथवा राष्ट्रपति ) द्वारा जारी किए जाते हैं। ये उस समय जारी किए जाते हैं जब विधान मण्डल का अधिवेशन न चल रहा हो। जब तक ये अध्यादेश जारी रहते हैं तब तक इन्हें साधारण कानून की तरह ही मान्यता दी जाती है।

राष्ट्रीय कानून तथा अन्तर्राष्ट्रीय कानून पर संक्षिप्त टिप्पणी

राष्ट्रीय कानून किसी राष्ट्र के अन्तर्गत व्यक्तियों व उनके संगठनों के सम्बंधों को नियमित करते हैं। ये राज्य द्वारा मान्यताप्राप्त होते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- संवैधानिक कानून तथा साधारण कानून।

अंतर्राष्ट्रीय कानून वे नियम हैं जो राज्यों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करते हैं और उनके झगड़ों को निपटाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय कानून समस्त राष्ट्रों के लिए एक ही होते हैं। इन कानूनों के पीछे संसार के सभी देशों की स्वीकृति होती है।

कानून स्वतंत्रता का विरोधी नहीं है।” इस कथन पर टिप्पणी

कानून और स्वतंत्रता परस्पर विरोधी नही है, कानून स्वतंत्रता का रक्षक है। इसके द्वारा स्वतंत्रता की तीन प्रकार से रक्षा की जाती है। एक, कानून व्यक्तियों को एक-दूसरे की स्वतंत्रता छीनने से रोकता है। हत्या, चोरी और मारपीट को कानून दण्डनीय अपराध घोषित करके इनको रोकता है। दूसरे, कानून व्यक्तियों को उनके विकास के अवसर प्रदान करता है। तीसरे, कानून सरकार की शक्तियों को सीमित करते हैं।

इस प्रकार नागरिकों की स्वतंत्रता बनी रहती है। संविधान के द्वारा नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जाती है और ऐसा वातावरण पैदा किया जाता है जिसमें उनके लिये स्वतंत्रता का उपभोग संभव है।

कानून के शासन से आप क्या समझते हैं?

प्राचीन समय में अधिकतर देशों में राजतंत्र प्रचलित था। राजा का ही शासन हुआ करता था। राजा की आज्ञा सर्वोपरि थी। परन्तु आज के लोकतंत्रीय शासन में कानून सर्वोपरि है। देश का कोई भी व्यक्ति, चाहे वह राष्ट्रपति हो, प्रधानमंत्री या कोई अधिकारी, सभी कानून के अनुसार ही कार्य करते हैं। भारत, इंग्लैण्ड आदि देशों में कानून का शासन प्रचलित है।

न्यायाधीशों के निर्णय और औचित्य में अन्तर

न्यायाधीशों के निर्णय और औचित्य में अन्तर (Distinguish Between Judicial Decision and Equity )- न्यायाधीशों के निर्णय तथा औचित्य में काफी अन्तर है। पहले में अर्थात्न्या याधीशों के निर्णय में, न्यायाधीश वर्तमान कानून की परिभाषा करके उसको स्पष्ट करता है। दूसरे में, अर्थात्औ चित्य में वह कानून में वृद्धि तथा विस्तार करता है। जिससे ऐसे मुकदमों के लिए भी कानून बन जाते हैं जहां पर पहले इनका अभाव था।

जब किसी मुकदमें में कोई प्रचलित कानून ठीक नहीं बैठता या उस पर बिल्कुल ही प्रकाश नहीं डालता तो ऐसी अवस्था में न्यायाधीशों को अपनी बुद्धि, न्याय भावना तथा अनुभव के अनुसार न्याय करना पड़ता है। यही औचित्य (Equity) है।

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