एक अच्छे कानून के कोई दो लक्षण बताइए तथा क्या नागरिक कानून का उल्लंघन कर सकता है? – Sab Sikho

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इस पोस्ट के माध्यम से आज जानेंगे की एक अच्छे कानून के लक्षण तथा क्या नागरिक कानून का उल्लंघन कर सकता है? इसके बारे विस्तार से चर्चा किया गया है। ध्यान पूर्वक पोस्ट को पढ़ें और जानकारी को प्राप्त करें।

एक अच्छे कानून के कोई लक्षण तथा नागरिक कानून का उल्लंघन

एक अच्छे कानून के कोई दो लक्षण बताइए तथा क्या नागरिक कानून का उल्लंघन कर सकता है? - Sab Sikho
एक अच्छे कानून के कोई दो लक्षण बताइए तथा क्या नागरिक कानून का उल्लंघन कर सकता है? – Sab Sikho

एक अच्छे कानून के कोई दो लक्षण बताइए

एक अच्छे कानून की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं।

(i) स्थायित्व (Stability) – कानून में स्थायित्व होना चाहिए अर्थात् थोड़े-थोड़े समय के बाद बदला नहीं जाना चाहिए। केवल परिस्थिति और समय की आवश्यकतानुसार ही उसमें परिवर्तन आना चाहिए।

(ii) निष्पक्षता (Impartiality)- कानून अच्छा तभी कहलायेगा जबकि उसमें निष्पक्षता हो । यदि एक वर्ग के लिए एक प्रकार का तथा दूसरे वर्ग के लिए दूसरे प्रकार का कानून बनाया जाए तो कानून का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।

क्या नागरिक कानून का उल्लंघन कर सकता है?

साधारणत लोकतंत्रीय राज्यों में कानून का उद्देश्य सार्वजनिक हित होता है, भले ही लोगों को ऐसा न लगता हो । राज्य के सभी लोगों को कानून का पालन करना चाहिए, क्योंकि कानून राज्य में व्यवस्था स्थापित करता है। नागरिकों के हितों की रक्षा होती है और न्याय प्राप्त होता है।

अतः नागरिक को कानून का उल्लंघन नहीं करना चाहिए परन्तु यदि राज्य की जनता किसी कानून विशेष को जनविरोधी समझती है तो पहले उसके विपक्ष में जनमत तैयार करना चाहिए और फिर उसका शान्तिपूर्वक विरोध करना चाहिए।

कानून के तत्वों का वर्णन निम्नलिखित

हालैण्ड के अनुसार-“कानून मानव के बाहरी व्यवहार का समान्य नियम है, जो सवाच्च या राजनीतिक शक्ति द्वारा लागू किया जाता है।” “Law is the general rule of external human action enforced by a sovereign or political authority” – Holland.

कानून के निम्न तत्व होते हैं-

  1. कानून मनुष्य के बाहरी आचरण को नियमित करते हैं, वे मनुष्य के आन्तरिक आचरण में हस्तक्षेप नहीं करते।
  2. कानून केवल नागरिक समाज (Civil society) में ही सम्भव है, क्योंकि नागरिक समाज एक सुव्यवस्थित संगठन होता है।
  3. कानूनों के निर्माण और लागू करने के लिए एक प्रभुसत्ताधारी की आवश्यकता होती है।
  4. नागरिकों को कानूनों का अनिवार्य रूप से पालन करना पड़ता है और यदि वे इनका उल्लंघन करें तो उन्हें उचित दण्ड मिलता है।
  5. कानून ऐसे होने चाहिए कि वे साधारण जनता की समझ में आसानी से आ सकें। जनता दण्ड के भय से नहीं अपितु सामाजिक हित की भावना से उनका पालन करें।

प्रत्यक्षवादी बल प्रयोग के दृष्टिकोणों की व्याख्या

प्रत्यक्षवादियों की यह मान्यता है कि नागरिक कानून पालन के लिए कर्त्तव्यबद्ध हैं। कानून का उल्लंघन करनेवालों को राज्य बल-प्रयोग द्वारा दण्डित कर सकता है। इस दृष्टिकोण को तीन आधारों पर विवादास्पद माना जाता है।

  1. सभी कानून दायित्व आरोपित नहीं करते। कई कानून नागरिकों को कुछ शक्तियां व अधिकार भी प्रदान करते हैं।
  2. कानून के अंतर्गत दायित्व वास्तव में कानून के औचित्य पर निर्भर करता है। कर्त्तव्यबोध नैतिक चेतना से मिलता है। इस पर किसी बाह्य शक्ति का कोई दबाव नहीं होना चाहिए।
  3. कानून को समाज की संस्थापक व्यवस्था के एक भाग के रूप में देखना आवश्यक है। न्यायिक व्यवस्था न्यायालय, विधायिका, कार्यपालिका तथा राजनीतिक दल जैसी संस्थाओं पर निर्भर है। वह समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था के प्रभावों से कटकर कार्य नहीं कर सकती।

कानून की परिभाषा का उल्लेख

कानून की परिभाषा (Definition of Law)- प्रसिद्ध विधि शास्त्री जॉन आस्टिन के अनुसार, “कानून उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश है।” हालैण्ड के अनुसार, “कानून मानव के बाहरी आचरण का सामान्य नियम है, जो सर्वोच्च राजनीतिक शक्ति के द्वारा लागू किया जाता है।

” विल्सन के शब्दों में, “कानून स्थापित विचारों तथा आदर्शों का वह अंश है जो शासन की सत्ता तथा शक्ति द्वारा सामान्य नियमों के रूप में पुष्टि तथा विधिवत स्वीकृति प्राप्त कर चुका हो।’

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कानून उन सामान्य नियमों को कहते हैं जो मनुष्य के बाहरी आचरण को नियंत्रित करते हैं। कानून के स्रोत (Sources of Law)- कानून का विकास लम्बी अवधि के पश्चात् अनेक स्रोतों द्वारा हुआ है। उनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

(i) रीति-रिवाज (Customs) – रीति-रिवाजों का बार-बार पालन होने से वे स्थायी नियम बन गए हैं और उन्होंने कानून का रूप धारण कर लिया है। इंग्लैण्ड में बहुत से कानून केवल रीति-रिवाजों पर आधारित हैं। रीति-रिवाजों द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने में कठिनाई नहीं होती, क्योंकि इन पर चलना लोगों की आदत ही होती है।

(ii) धर्म (Religion) – कानून का दूसरा महत्वपूर्ण स्रोत धर्म है। धर्म सदा मनुष्य के आचरण को प्रभावित करता है। हिन्दुओं में धर्माचरण की बात को अत्यधिक प्रभावी ढंग से कहा गया है। राजा भी धर्मानुसार आचरण करता था। धर्म के अनुसार चलने से पुण्य तथा धर्म के विरूद्ध चलने से पाप होगा, इसी भावना के द्वारा मनुष्य को अच्छे कार्य करने की ओर प्रेरित किया गया।

घर का मुखिया घर का कार्य धर्मानुसार चलाता था और राज्य के कानून धर्म के अनुसार बनते थे। हिन्दू राजाओं के कानून ‘मनुस्मृति’ आदि ग्रन्थों पर आधारित हैं। आज भी पाकिस्तान में कानून इस्लाम धर्म के आधार पर बनाए जाते हैं।

(iii) न्यायिक निर्णय (Judicial Decision) – बहुत से कानूनों का निर्माण न्यायधीश करते हैं, कानून की व्यवस्था का अधिकार न्यायपालिका को प्राप्त है। भिन्न-भिन्न मुकदमों में न्यायाधीश झगड़ों का निर्णय करते समय कानूनों की व्याख्या करते हैं और उनकी इस व्याख्या से कानून विस्तृत भी हो जाते हैं और कई बार नये कानून भी बन जाते हैं।

न्यायाधीशों द्वारा दिया गया निर्णय भविष्य में सामने आने वाले मुकदमों के लिए पथ-प्रदर्शन करता है और कानून का कार्य करता है।

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