कानून शब्द से आप क्या समझते हैं? नैतिक कानून तथा राज्य कानून में क्या अंतर है – Sab Sikho

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दोस्तों आज हम जानेंगे कि कानून क्या होता है और नैतिक कानून तथा राज्य के कानून में क्या अंतर है? तो कानून शब्द से आप क्या समझते हैं इसके बारे में हमने बहुत ही विस्तार से इस पोस्ट के माध्यम से मैंने बताने की कोशिश की है और मुझे उम्मीद है कि आप लोग इसे पढ़कर जानकारी लेंगे और अपने ज्ञान को और भी इंप्रूव कर सकेंगे।

कानून शब्द से आप क्या समझते हैं तथा नैतिक कानून तथा राज्य कानून में अंतर

कानून शब्द से आप क्या समझते हैं? (What Do You Understand By The Term Law?)

कानून के लिए अंग्रेजी भाषा में ‘ला’ (Law) शब्द का प्रयोग किया जाता है। ‘ला’ शब्द की उत्पति ट्यूटौनिक भाषा के शब्द ‘लैग’ (Lag) से हुई है, जिसका अर्थ ‘सुनिश्चित’ (Fixed) है। इस दृष्टि से कानून वह निश्चित नियम है जो राज्य द्वारा बनाया तथा लागू किया जाता है।

कानून शब्द से आप क्या समझते हैं? नैतिक कानून तथा राज्य कानून में क्या अंतर है - Difference Between Moral Law and State Law - Sab Sikho
कानून शब्द से आप क्या समझते हैं? नैतिक कानून तथा राज्य कानून में क्या अंतर है – Sab Sikho

कानून राज्य के लिए निश्चित नियम है जो समान रूप से व्यक्ति, समाज तथा राज्य के पारस्परिक सम्बंधों को नियमित करते हैं। इनका सम्बन्ध व्यक्ति की बाहरी क्रियाओं से होता है तथा इनका उल्लंघन करने वालों को दण्ड मिलता है।

नैतिक कानून तथा राज्य कानून में अंतर (Difference Between Moral Law and State Law)

(1) नैतिक कानून का सम्बन्ध नैतिकता से होता है, जबकि राज्य कानून का सम्बन्ध राज्य से होता है। उदाहरण के लिए गरीबों की आर्थिक सहायता करना नैतिक कानून है। रिश्वत लेना कानूनी जुर्म है, यह राज्य कानून है।

(2) राज्य कानून के पीछे राज्य की शक्ति होती है, परन्तु नैतिक कानून के पीछे राज्य की शक्ति नहीं होती। यदि कोई व्यक्ति राज्य कानून का उल्लंघन करे तो राज्य की ओर से दण्ड मिलता है, परंतु नैतिक कानून का उल्लंघन करने पर व्यक्ति को समाज दण्ड दे सकता है, राज्य नहीं।

(3) राज्य कानून अधिक निश्चित और स्पष्ट होता है। नैतिक कानून के साथ ऐसा नहीं होता। यह हमेशा स्पष्ट नहीं होता। नैतिक कानून के बारे में लोगों की राय भिन्न हो सकती है, परन्तु राज्य कानून लिखित एवं निश्चित होते हैं.

(4) नैतिक कानून का क्षेत्र विस्तृत होता है। इसका संबंध व्यक्ति के आंतरिक तथा बाह्य, दोनों पक्षों से होता है। वह व्यक्ति को बूरा सोचने से रोकता है, परन्तु राज्य कानून का क्षेत्र इतना विस्तृत नहीं होता है।

(5) नैतिक कानून एक समान तथा सर्वव्यापक नहीं होते। वे स्थान और व्यक्ति के अनुसार बदलते रहते हैं। राज्य कानून समान रूप से सब पर लागू होते हैं।

प्रत्यक्षवादी कानून के सिद्धांत का अर्थ (Meaning of The Doctrine of Positivist Law)

प्रत्ययवादी कानून के सिद्धांत का अर्थ- कानून के मानकीय दृष्टिकोण (Normative) के अलावा प्रत्यक्षवादी दृष्टिकोण भी है। इसके अनुसार कानून किसी विशेष समुदाय में आचार के कुछ नियम होते हैं। कानून निहित आदेशों की एक ऐसी व्यवस्था है जो किसी समाज में मानव व्यवहार को नियमित करते हैं।

अस्तित्व के विचार से कानून किसी भी समाज में समस्त व्यक्तियों को किसी सम्प्रभु का ऐसा आदेश होते हैं जिनके पीछे राज्य की भौतिक शक्ति और उस पर आधारित दंड विधान प्रभावी होता है।

परन्तु इस दृष्टिकोण को निम्नलिखित आधारों पर विवादास्पद माना जाता है –

(1) सभी कानून दायित्व आरोपित नहीं करते। कई कानून नागरिकों को कुछ शक्तियाँ और अधिकार भी प्रदान करते हैं।

(2) कानून के अन्तर्गत दायित्व वास्तव में कानून के औचित्य पर निर्भर करता है। कर्त्तव्यबोध नैतिक चेतना से मिलता है। इस पर किसी बाह्य शक्ति का कोई दबाव नहीं होना चाहिए।

(3) कानून को समाज की एक संस्थापक व्यवस्था के एक भाग के रूप में देखना आवश्यक है। न्यायिक व्यवस्था न्यायालय, विधायिका, कार्यपालिका तथा राजनीतिक दल जैसी संस्थाओं पर निर्भर है। वह समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था के प्रभाव से हटकर कार्य नहीं कर सकती।

कानून के विभिन्न स्रोत कौन-कौन से है (Various Sources of Law)

कानून के विभिन्न स्रोत- आधुनिक युग में विधानमण्डल कानूनों का निर्माण करता है, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि विधानमण्डल ही कानून का एकमात्र स्रोत है प्रसिद्ध विचारक हॉलैंड (Holland) ने कानून के निम्न मुख्य स्रोत बताए हैं –

  1. रीति-रिवाज,
  2. धर्म,
  3. न्यायिक निर्णय,
  4. वैज्ञानिक टिप्पणियां,
  5. साम्य-नीति,
  6. व्यवस्थापन। हॉलैंड द्वारा दी गई सूची में हम लोकमत भी सम्मिलित कर सकते हैं।

(1) रीति-रिवाज – रीति-रिवाज कानून का सबसे पुराना तथा आधारभूत स्रोत माना गया है। समाज तथा राज्य के प्रारंभिक संगठन में रीति-रिवाज ही कानून का कार्य करता था। वास्तव में- “इन रीति-रिवाजों का विकास व्यक्ति व सम्पति की सुरक्षा तथा जीवन की आवश्यकताओं की व्यवस्था के लिए अर्थात्उ पयोगिता के कारण हुआ।” – गिलक्राइस्ट -“The urge arose out of such needs as security of person and property, or the provision of the necessities of life.. in short utility.” -Gilchrist-

कानून बनाते समय देश के रीति-रिवाजों को ध्यान में रखा जाता है। इंग्लैंड में सामान्य कानून तथा भारत में हिन्दू तथा मुस्लिम कानून आदि का आधार रीति-रिवाज ही है।

(2) धर्म- इतिहास में रीति-रिवाजों के साथ धर्म का भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। प्राचीन और मध्यकाल में धार्मिक सिद्धांतों का काफी प्रभाव रहता था। भारत में कई हिन्दू राजा मनुस्मृति के आधार पर तथा मुस्लिम शासक कुरान के आधार पर कई कानून बनाये थे. विल्सन (Wilson) के अनुसार -“वास्तव में रोम का प्रारंभिक कानून तकनीक, धार्मिक नियमों के समूह से अधिक कुछ नहीं था ।

कानून बनाते समय सभी धर्मों को समान समझा जाता है। इस प्रकार धर्म भी कानून के अन्य स्रोतों के साथ एक स्रोत रहा है। इस स्रोत की व्याख्या करते हुए मैकाइवर ने कहा है, “प्रारंभ में कानून किसी कबीले की सम्पति थे जो उसे पुरस्कार के रूप में ईश्वर अथवा देवताओं से प्राप्त हुए थे।”

(3) न्यायिक निर्णय- न्यायिक निर्णय न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णयों का दूसरा नाम है। आज भी न्यायिक निर्णयों से कानून के विकास में काफी सहायता मिलती है। न्यायधीश राज्य के कानूनों की व्याख्या करते हैं जिससे कानून का विकास होता है। इसी प्रकार न्यायालय द्वारा किसी झगड़े पर जो निर्णय दिया जाता है वह भविष्य के लिए कानून के समान होता है।

न्यायालय कानून की रक्षा भी करता है ताकि कानून का अस्तित्व बना रहे। इस प्रकार न्यायिक निर्णय, कानून के स्पष्टीकरण, उसकी व्याख्या, विकास तथा कानून का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

(4) वैज्ञानिक टिप्पणियां – यह कानून का एक व्यावहरिक साधन है। इससे अभिप्राय यह है कि कई प्रसिद्ध विधिवेत्ता पुराने व नए कानूनों, न्यायिक निर्णयों तथा कानूनो, न्यायिक निर्णयों तथा कानून प्रणालियों का विस्तार से अध्ययन करते हैं, उनमें तुलना करते हैं तथा अपने विचारों को टिप्पणियों के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

जब कोई न्यायिक निर्णय किसी वैज्ञानिक टिप्पणी के आधार पर किया जाता है तो भविष्य में यह निर्णय कानून के समान होता है। इन टिप्पणियों में कुछ विधिवेताओं की टिप्पणियाँ काफी प्रसिद्ध हैं। इंग्लैंड में कोक, ब्लेस्टोन, हाले, केंट के नाम उल्लेखनीय हैं। भारत मे हेदया, दाय भाग, मिताक्षरा, फतवा आलमगिरी आदि की टिप्पणियां महत्वपूर्ण हैं।

(5) साम्य नीति- कई बार न्यायाधीशों के सामने ऐसे मुकदमें आ जाते हैं जिनका निर्णय करने के लिए कोई सम्बन्धित कानून नहीं होता। ऐसी स्थिति में न्यायाधीश फैसला करते हुए साम्य-नीति के आधार पर न्याया करते हैं।

इससे नए कानूनों का विकास होता है। इस प्रकार “साम्य नीति का सरल अर्थ समानता अथवा न्याय है या ऐसे झगड़ों में जिन पर वर्तमान कानून उचित रूप से लागू न होता हो, सामान्य बुद्धि अथवा न्याय के अनुसार निर्णय करना है।” – गिलक्राइस्ट

(6) लोकमत-कहा जाता है कि प्रजातंत्र में कानून जनता की इच्छा के अनुसार बनाते हैं अथवा सामान्य इच्छा ही कानून का वास्तविक स्रोत है। प्रत्यक्ष प्रजातंत्र में तो लोग स्वयं कानून बनाते हैं, जहां पर प्रत्यक्ष प्रजातंत्र के कुछ साधन अपनाए जाते हैं। जहां तक अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र का प्रश्न है वहां भी चुनाव द्वारा, राजनीतिक दलों द्वारा, लोकमत द्वारा विधानमण्डलों पर प्रभाव पड़ता है। परन्तु लोकमत का केवल प्रभाव होता है।

लोग सरकार को कोई विशेष कानून बनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते, फिर भी लोकमत एक बड़ी व्यावहारिक शक्ति है।

(7) व्यवस्थापन – आधुनिक लोकतंत्रीय राज्यों में कानून बनाने का सबसे बड़ा स्रोत व्यवस्थापिकाएं हैं, जिनका मुख्य कार्य कानून बनाना, उनमें संशोधन करना तथा कई कानूनों को समाप्त करना है। कोई भी रीति- रिवाज, वैज्ञानिक टिप्पणी तब तक कानून नहीं कही जा सकती जब तक कि विधानमण्डल उसे कानून के रूप में स्वीकार न कर लें।

इसे कानून का निर्माण करनेवाली सर्वोच्च शक्ति कहते हैं अर्थात् यदि वह चाहे तो अन्य स्रोतों को सीमित कर सकती हैं।

सार्वजनिक कानून तथा निजी कानून में अंतर (Public Law and Private Law)

सार्वजनिक कानूत तथा निजी कानून में अंतर- निजी कानून उन कानूनों को कहते हैं जो व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करते हैं। ये राज्य द्वारा भी बनाए जाते हैं और रीति-रिवाजों पर भी आधारित होते हैं। इन कानूनों का उल्लंघन करने पर सरकार स्वयं मुकदमा नहीं चलाती बल्कि व्यक्ति ही एक-दूसरे के विरूद्ध मुकदमा चलाते हैं।

इनमें प्रायः सम्पति के हस्तांतरण, विवाह व तलाक, उत्तराधिकार, आपसी समझौते, वस्तुओं की बिक्री व खरीद, क्षतिपूर्ति आदि से सम्बंधित कानून होते हैं। सार्वजनिक कानून वे कानून हैं जो लोगों के आपसी सम्बंधों को नियमित करने के साथ-साथ सार्वजनिक सुरक्षा, शांति और व्यवस्था से भी सम्बंधित होते हैं।

इनमें लगभग सभी प्रकार के कानून, जैसे-चोरी, डकैती, हत्या, लूटमार, न्याय, शिक्षा, बीमारी की रोकथाम से सम्बंधित तथा यातायात से सम्बंध रखनेवाले कानून आते हैं। इनके उल्लंघन करने पर सरकार भी एक पक्ष के रूप में मुकदमा चलाती है।

व्यक्तिगत कानून और सार्वजनिक कानून में यह अंतर है कि व्यक्तिगत कानून दो या अधिक लोगों में आपसी सम्बन्धों को नियमित करता है और उसके उल्लंघन से उन सम्बधित व्यक्तियों को ही हानि पहुंचाती हैं, परन्तु सार्वजनिक कानून सभी व्यक्तियों से सम्बन्धित होता है और उसके उल्लंघन से समस्त समाज को हानि पहुंच सकती है।

व्यक्तिगत कानून का उल्लंघन किए जाने की दशा में केवल सम्बन्धित व्यक्ति (जिसे हानि पहुंची है) मुकदमा चला सकता है, सरकार स्वयं उस पर मुकदमा नहीं चलाती है और एक पक्ष के रूप में कार्यवाही करती है। यदि कोई व्यक्ति दूसरे की हत्या कर देते तो सरकार स्वयं उसके विरूद्ध कार्यवाही करके मुकदमा चलाती है।

मुझे उम्मीद है कि आप लोगों को हमारा यह पोस्ट काफी अच्छा लगा होगा और अगर अच्छा लगा है तो हमारे इस पोस्ट को शेयर जरूर करें और अधिक जानकारी चाहिए तो हमने और भी पोस्ट लिखा है तो आप जरूर उन्हें पढ़ें और अपने ज्ञान को और भी बढ़ाएं, बहुत-बहुत धन्यवाद।

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