आज मैं बात करने वाला हूं अधिकार का जिसमें अधिकार के आवश्यक तत्व होने तथा नागरिक द्वारा निभाए जाने वाले कुछ कर्तव्यों का विस्तार से उल्लेख किया गया है तो जरूर इसे पूरा पढ़ें।
अधिकार के आवश्यक तत्व – राजनीतिक अधिकारों का उल्लेख
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अधिकार के आवश्यक तत्व बताइए
अधिकार के आवश्यक तत्व (Essential Elements of Rights) –
1. किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह की मांग अधिकार होनी चाहिए।
2. मांग उसके विकसित उच्च जीवन के लिए आवश्यक एवं न्यायोचित हो।
3. समाज उस मांग को उचित समझकर स्वीकार करें।
अधिकारों की परिभाषा दीजिए
ऑस्टिन के अनुसार – “ अधिकार एक मनुष्य की वह क्षमता है जिसमें वह किसी दूसरे व्यक्ति से कोई काम भी करा सकता है या दूसरे को कोई काम करने से रोक सकता है।”
लास्की (Laski) के अनुसार – “अधिकार सामान्य जीवन की वह परिस्थितियाँ हैं जिनके बिना कोई व्यक्त अपने जीवन को पूर्ण नहीं कर सकता।” इस प्रकार अधिकार ऐसी अनिवार्य परिस्थिति है, जो मनुष्य के विकास के लिए आवश्यक है। वह व्यक्ति की मांग है तथा उसका वह हक है, जिसे समाज, राज्य तथा कानून भौतिक मान्यता देते हैं और उसकी रक्षा करते हैं।
उदाहरणार्थ, यदि मनुष्य जीवित न रहे तो वह कुछ भी नहीं कर सकता और यदि स्वतंत्रता न मिले तो वह अपनी उन्नति के लिए कुछ भी नहु कर सकता । अतः व्यक्ति का जीवन, जीविका तथा स्वतंत्रता उसके व्यक्तित्व के विकास की आवश्यक परिस्थितियाँ हैं। अतः वे मनुष्य के अधिकार हैं।
किन्हीं दो राजनीतिक अधिकारों का वर्णन कीजिए
दो राजनीतिक अधिकार निम्नलिखित हैं-
1. मतदान का अधिकार (Right to Vote)- जिन देशों में प्रजातंत्र शासन है वहां नागरिकों को वयस्कता के आधार पर मतदान का अधिकार प्रदान किया जाता है।
2. चुनाव लड़ने का अधिकार (Right to contest elections)- लोकतंत्रीय देशों में प्रत्येक व्यक्ति को निर्वाचन में खड़ा होने का अधिकार प्राप्त है। निर्वाचित होने पर उन्हें सरकार का निर्माण करना होता है।
नागरिकता का क्या अर्थ है ?
नागरिकता (Citizenship)- नागरिकता से नागरिक के जीवन की एक स्थिति निश्चित होती है जिसके कारण वह राज्य द्वारा दिए गए सभी सामाजिक तथा राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग करता है। राज्य के प्रति कुछ कर्तव्यों का पालन करता है। अतः एक नागरिक को राज्य का सदस्य होने के नाते जो स्तर (status) अथवा पद प्राप्त होता है, उसे नागरिकता कहते हैं।
नागरिकों के दो धार्मिक अधिकारों का वर्णन कीजिए
नागरिकों के दो धार्मिक अधिकार निम्नलिखित हैं-
1. धार्मिक विश्वास का अधिकार (Right to religious belief)- कोई भी मनुष्य अपनी इच्छानुसार धार्मिक विश्वास रख सकता है। धर्म उसका व्यक्तिगत मामला है। अतः पूजा-पाठ करने का अधिकार है।
2. धार्मिक प्रचार-प्रसार का अधिकार (Right to Propagate Religion)- हर एक धर्म के मानने वालों को अपने धर्म का प्रचार (विज्ञापन) करने का समरूप अधिकार प्राप्त है। धर्म प्रचारक अपने धर्म के प्रचार-प्रसार (विज्ञापन) के लिए शांतिपूर्ण सभा भी कर सकते हैं।
कर्त्तव्य से आप क्या समझते हैं ?
कर्तव्य शब्द जिसे अंग्रेजी में Duty कहते हैं, कि उत्पति ‘Debt’ से हुई है। इसका अर्थ है ‘ऋण’, इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में कर्तव्य व्यक्ति का समाज अथवा राज्य के प्रति ऋण है, जो उसे अधिकारों के बदे चुकाना होता है। इस ऋण को चुकाने के लिए उसे कुछ कार्य करने होते हैं जिन्हें कर्तव्य कहा जाता है।
नागरिकों के किन्हीं दो कर्तव्यों का उल्लेख करें
भारत के संविधान में 1976 ई. में नागरिकों के दस मौलिक कर्तव्यों को 42वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया। उनमें से दो मौलिक कर्तव्यों का विवेचन निम्नलिखित है-
1. भारत के हर एक नागरिक का कर्तव्य है कि वह संविधान का खास पालन करे और उसके संस्थाओं, आदर्शों, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे।
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए और उनका पालन करे।
नागरिक द्वारा निभाए जाने वाले कुछ कर्त्तव्यों का उल्लेख कीजिए
नागरिकों द्वारा निभाए जानेवाले कुछ कर्तव्य का उल्लेख निम्नलिखित है-
1. हमें अपने राज्य के प्रति निष्ठावान होना चाहिए।
2. सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन करना चाहिए।
3. सरकार द्वारा लगाए करों का देना चाहिए।
4. सैनिक सेवा हमारा एक अन्य कर्तव्य है।
5. जन-सम्पति की रक्षा नागरिक का कर्तव्य होता है।
6. नागरिक के अन्य कर्तव्यों में मताधिकार का प्रयोग, सरकार को सहयोग देना, अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाना आदि सम्मिलित किए जा सकतें हैं।
अधिकार और कर्तव्यों के आपसी संबंधों के उदाहरण
यद्यपि अधिकार और कर्तव्य देखने में अलग-अलग प्रतीत होते हैं परन्तु वास्तव में वे एक-दूसरे से पृथक नहीं हैं। अधिकार और कर्तव्य सदैव साथ-साथ चलते हैं। अधिकार और कर्तव्यों का घनिष्ट संबंध होता है। कर्तव्यों के बिना अधिकारों की कल्पना नहीं की जा सकती।
कर्तव्यों के पालन करने के बाद ही अधिकारों की कल्पना की जा सकती है। अतः अधिकारों और कर्तव्यों को एक-दसूरे से अलग नहीं किया जा सकता। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। एक का दूसरे के बिना कोई अस्तित्व नहीं। अतः यह ठीक ही कहा गया है कि, “अधिकारों में कर्तव्य निहित हैं।” उदाहरणत:
1. यदि एक नागरिक भाषण की स्वतंत्रता का अधिकार माँगता है तो उसका यह कर्तव्य है कि वह अपने भाषण में किसी दूसरे नागरिक का अपमान न करें।
2. यदि कोई व्यक्ति किसी अधिकार का उपयोग करता है तो उसका कर्तव्य है कि वह दूसरे के अधिकारों में बाधा न डाले, जैसे एक व्यक्ति को मतदान का अधिकार है तो उसका यह कर्तव्य है कि वह दूसरे के मताधिकार में किसी प्रकार की बाधा न डालें।
आशा करता हूं कि आज का हमारा यह पोस्ट अधिकार से संबंधित था तो आप लोगों को बहुत ही अच्छा लगा होगा। इसमें मैंने नागरिक द्वारा निभाया जाने वाले कुछ कर्तव्यों का उल्लेख और उनके अधिकार के बारे में बात किया है। और भी इसी तरह के संबंधित पोस्ट पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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