आज इस पोस्ट के माध्यम से हम जानेंगे कि धर्म की परिभाषा क्या है धर्म का राजनीतिक पर क्या प्रभाव पड़ा तथा हम यह भी जानेंगे कि धर्म का मानव जीवन पर क्या मुख्य प्रभाव पड़ा और इसकी क्या भूमिका है तो आइए जानते हैं।
धर्म की परिभाषा क्या है, धर्म का मानव जीवन और राजनीति पर मुख्य प्रभाव
धर्म से क्या आशय है?
धर्म शब्द की उत्पति ‘धृ’ धातु से होती है, जिसका अर्थ है धारण करना। जनता को एक-सूत्र में बांधने के कारण ही इसे धर्म कहते हैं। धर्म के द्वारा व्यक्ति का नैतिक विकास होता है। वह सदमार्ग पर चलने को प्रेरित होता है।
धर्म को परिभाषित करें
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार धर्म शब्द के बहुत ही व्यापक अर्थ हैं। धर्म शब्द में व्यक्तिगत धर्म, सामाजिक धर्म, राजा का धर्म, शासनीय धर्म, आध्यात्मिक धर्म आदि निहित हैं। धर्म मनुष्य का आध्यात्मवाद पर आधारित मानव व्यवहार का एक दृष्टिकोण है।
डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनुसार, “धर्म जीवन की विभिन्न गतिविधियों में सामंजस्य स्थापित करते हुए उसे दिशा निर्देश प्रदान करता है। धर्म महज पंथ या सम्प्रदाय नहीं है, जो परम्परागत या सामाजिक बाध्यता लागू करे। यह जीवन का सम्पूर्ण नियम है। भारत में तो धर्म मानवीय एकता का प्रतीक है जो सही व न्याय-संगत जीवन का मार्ग प्रशस्त करता है।”
पी.वी. काणे (P.V. Kane) ने अपनी पुस्तक ‘History of Daram’ में लिखा है- “धर्म-शास्त्र के लेखकों के अनुसार धर्म से अर्थ, जीवन के ढंग, पद्धति अथवा आचरण के नियमों से है, जो व्यक्ति के समाज के सदस्य होने के नाते उसके कार्यों, क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं और उसके विकास के साथ उसे मानवीय लक्ष्य की प्राप्ति के योग्य बनाते हैं।”
स्पैलमैन (Spellman) – के अनुसार, “धर्म का तात्पर्य कर्तव्य का पालन, उचित क्रिया, प्रकृति का नियम सार्वभौमिक सत्य, परम्परा पर आधारित रीति-रिवाजों का नियंत्रण है। उचित अनन्त तथा अपरिवर्तनशील व्यवस्था कानून तथा इन सभी का बदला हुआ स्वरूप है। इसका धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव है। यह एक ऐसा नैतिक मापदण्ड है जिसके माध्यम से प्रत्येक मनुष्य को मापा जा सकता है।”
धर्म का मानव जीवन पर क्या मुख्य प्रभाव पड़ा?
प्राचीन काल में धर्म का विशेष प्रभाव रहा था। मनुष्य जीवन का प्रत्येक अंग धर्म से प्रभावित रहा है। प्राचीन काल में मनुष्य बड़ा धर्मभीरु रहा है। वह नदी, पहाड़, समुद्र, सूर्य, चांद, बादल, अग्नि और पवन आदि सभी की पूजा करता था। वह प्राकृतिक शक्तियों से डरता था। धीरे-धीरे ईश्वर की सत्ता का प्रचार हुआ और मनुष्य प्रभु की भक्ति करने लगा।
धर्म का राजनीति पर प्रभाव बताइए
धर्म ने प्राचीनकाल में बिखरी हुई जातियों को एकता के सूत्र में पिरोया और उनमें अनुशासन उत्पन्न किया। आज भी धर्म की मान्यताओं का राज्य के द्वारा उल्लंघन नहीं किया जाता। धर्म ने राज्य के विकास में भी सहायता की।
धर्म सापेक्ष राज्य से क्या अभिप्राय है?
धर्म सापेक्ष राज्य का अर्थ समझने से पूर्व हमें सापेक्षता का अर्थ जानना आवश्यक है। धर्म सापेक्षता का अंग्रेजी रूपांतर ‘Theocracy’ है। जिसका अर्थ है, वह शासन जो, ईश्वर की सत्ता से शासित होता है।
इस प्रकार धर्म तत्व को हम उस शासन व्यवस्था के रूप में स्वीकार करते हैं जो धर्म पर आधारित हो, जिसमें शास्त्र संचालन ईश्वर के नाम पर किया जाता है, जिसमें शासक ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में प्रतिबिंबित हो तथा जहां, धर्म, धर्म गुरु एवं धार्मिक संस्थाओं को राज्य के ऊपर स्थान दिया दिया जाता है।
संक्षेप में धार्मिक नियंत्रण में संचारित शासन व्यवस्था को धर्म-तंत्र कहा जाता है। जिन राज्यों में धर्मतंत्रीय शासन व्यवस्था प्रचलित होती है, वह धर्मतंत्रात्मक अथवा धर्म सापेक्ष राज्य कहलाते हैं।
धर्म सापेक्ष राज्य की विशेषताएं बताइए
धर्म सापेक्ष राज्य की विशेषताएं अग्रलिखित हैं:
1. राज्य का एक विशेष धर्म होता है।
2. नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य के निर्धारण का आधार भी धर्म ही होता है।
3. अच्छा शासक व्यक्तियों के पुण्यों का फल तथा बुरा शासक व्यक्तियों के पापों का फल माना जाता है।
4. धर्म सापेक्ष राज्य सर्वाधिकारवादी प्रवृत्ति के होते हैं।
धर्म निरपेक्ष राज्य की विशेषताओं का उल्लेख
धर्मनिरपेक्ष राज्य (Secular State) – पं. नेहरू के शब्दों में -“धर्म और आत्मा की स्वतंत्रता, जिनका कोई धर्म नहीं उनके लिए भी स्वतंत्रता । इसका अभिप्राय है – सब धर्मों के लिए स्वतंत्रता । इसका अर्थ है-सामाजिक और राजनीतिक स्वतंत्रता।”
डी.ई. स्मिथ (Donald E. Smith) के अनुसार- “धर्म निरपेक्ष राज्य निजी और सामूहिक रूप में धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। वह व्यक्ति के साथ, उसके धर्म का विचार किए बिना नागरिक के रूप में व्यवहार करता है। संवैधानिक तौर पर वह किसी धर्म से सम्बंधित नहीं होगा। वह न किसी धर्म की वृद्धि की कोशिश करता है और न ही धर्म में हस्तक्षेप करता है।’
हरिविष्णुकामथ केअनुसार – “एकधर्मनिरपेक्ष राज्यनतोपरमात्मासहित राज्य होता है, न धर्मरहित और न धर्मविरोधी।” सी. राजगोपालाचारी के शब्दों में, “जब यह कहा जाता है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य होगा, तो इसका अर्थ यही है कि राज्य किसी भी धर्म को न तो निरुत्साहित करेगा और न उसका विरोध करेगा।”
प्रोफेसर टी. के. टोपे, “भारत के धर्मनिरपेक्ष होने का अर्थ यह नहीं है कि इसमें ईश्वर के अस्तित्व को नहीं माना जाता। भारतीय संविधान में ईश्वर के अस्तित्व को मान्यता प्रदान की गई है। देश के प्रमुख पदाधिकारी पद ग्रहण करते समय ईश्वर के नाम पर शपथ ले सकते हैं।”
धर्मनिरपेक्ष राज्य की विशेषताएं (Characteristics of secular state)-
(i) धर्म व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला कार्य है।
(ii) धर्मनिरपेक्ष राज्य में कोई राज्य धर्म नहीं होता है।
(iii) धर्म निरपेक्ष किसी धर्म विशेष पर आधारित न होते हुए भी अधार्मिक नहीं है।
(iv) धार्मिक कट्टरता का विरोध किया जाता है।
(v) धर्मनिरपेक्ष राज्य में सभी धर्मो के प्रति समान आदर भाव रहता है।
(vi) धर्मनिरपेक्ष राज्य में सरकार द्वारा धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती है।
(vii) धर्म निरपेक्ष राज्य का मुख्य आधार लोकतंत्र होता है।
धर्मनिरपेक्ष राज्य की आलोचना (Criticism of secular state) –
1. शासन प्रणाली का आधार भौतिक होता है अतः मनुष्यों के नैतिक एवं आध्यात्मिक हितों की साधना नहीं हो सकती है।
2. राज्य की एकता छिन्न-भिन्न होने का खतरा सदैव बना रहता है।
3. बहुसंख्यक वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है।
4. धार्मिक शिक्षा न मिलने से जीवन में उच्छृंखलता और अनुशासनहीनता पायी जाती है।
5. धर्मनिरपेक्षता राज्य नैतिकता के विमुख होने के कारण कभी भी जनहितैषी नहीं बन सकता है।
6. नैतिकता के अभाव में सेनापति अपनी तानाशाही स्थापित कर सकता है।
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