राजनीतिक स्वतंत्रता आर्थिक समानता के अभाव में निरर्थक है तथा स्वतंत्रता की परिभाषा दें – Sab Sikho

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आज के इस पोस्ट में बताया गया है कि राजनीतिक स्वतंत्रता आर्थिक समानता के अभाव में निरर्थक है क्या यह कथन सही है तथा स्वतंत्रता की परिभाषा के बारे में भी बताया गया है आप इसे जरूर से पढ़ें।

राजनीतिक स्वतंत्रता आर्थिक समानता – स्वतंत्रता की परिभाषा

राजनीतिक स्वतंत्रता आर्थिक समानता के अभाव में निरर्थक

स्वतंत्रता और समानता प्रजातंत्र के दो स्तंभ माने जाते हैं। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक समानता के सम्बंध की व्याख्या करते हुए लास्की ने कहा है- “आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता एक धोखा मात्र है, पाखण्ड है और कहने की ही बात है” लास्की के इस कथन की सत्यता जानने के लिए यह आवश्यक है कि हम पहले राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक समानता का अर्थ समझें।

राजनीतिक स्वतंत्रता (Political Liberty)– राजनीतिक स्वतंत्रता का अभिप्राय है कि व्यक्ति देश के शासन में भाग ले सकता है। नागरिकों को मतदान का अधिकार होता है। चुने जाने का अधिकार होता है। सार्वजनिक पद पाने का अधिकार होता है। सरकार की नीतियों की आलोचना का अधिकार होता है।

आर्थिक समानता (Economic Equality)– आर्थिक समानता का अर्थ है कि सभी नागरिकों को अपनी आजीविका कमाने हेतु समान अवसर उपलब्ध हो । प्रत्येक व्यक्ति को अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त साधन प्राप्त होने चाहिए।

आर्थिक असमानता कम से कम होनी चाहिए। आर्थिक शोषण नहीं होना चाहिए तथा उत्पादन और वितरण के साधनों की ऐसी व्यवस्था हो जो सबके हित में हो।

राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक समानता में सम्बंध (Relations between Liberty and Economic Equality)-

1. निर्धन व्यक्ति के लिए मताधिकार अर्थहीन हैं (Right to vote is meaningless for a poor person)- राजनीतिक अधिकारों में वोट का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है परन्तु एक निर्धन व्यक्ति के लिए, जिसे रोटी खाने को नहीं मिलती, रोटी का वोट के अधिकार से अधिक मूल्य है।

राजनीतिक स्वतंत्रता के समर्थक यह भूल जाते हैं कि व्यक्ति के लिए वोट डालने और चुनाव लड़ने के अधिकार से अधिक आवश्यक रोटी कपड़ा और मकान हैं।

2. निर्धन व्यक्ति द्वारा मत का सदुपयोग असंभव है (Proper use of vote is impossible for a poor person)- मताधिकार न केवल अधिकार है वरन् परम कर्तव्य भी है। निर्धन व्यक्ति न तो शिक्षा प्राप्त कर सकता है, न ही देश की समस्याओं को समझ सकता है। अतः वह अपने मत का सदुपयोग भी नहीं कर सकता।

3. निर्धन व्यक्ति के लिए चुनाव लडना असंभव है (Contesting an Election is impossible for a poor man)- आजकल चुनाव लड़ने में लाखों रुपया खर्च होता है। निर्धन व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति ही नहीं कर सकता चुनाव लड़ना तो दूर रहा, वह चुनाव लड़ने का स्वप्न भी नहीं देख सकता।

4. राजनीतिक दलों पर भी धनिकों का ही नियंत्रण रहता है (Political parties are con- trolled by the rich)- राजनीतिक दल धनी व्यक्तियों के निर्देशन पर ही चलते हैं। निर्धन व्यक्ति का राजनीतिक दल पर कोई प्रभाव नहीं होता। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राजनीतिक स्वतंत्रता आर्थिक समानता के अभाव में निरर्थक है।

स्वतंत्रता की परिभाषा – इसके नकारात्मक एवं सकारात्मक पहलु

स्वतंत्रता का अंग्रेजी पर्याय Liberty है जो लैटिन भाषा के “लाइबर” (Liber) शब्द से बना है जिसका अर्थ है – सब प्रतिबंधों का अभाव।

स्वतंत्रता की परिभाषा (Definition of Liberty)-

1. गेटेल (Gettel) के अनुसार- “स्वतंत्रता वह सकारात्मक शक्ति है जिसके द्वारा उन कार्यों का आनंद प्राप्त किया जाता है जो करने योग्य है।”

2. लास्की (Laski) के अनुसार- “स्वतंत्रता का अर्थ उस वातावरण से है जिसमें मनुष्य को अपने उज्ज्वल स्वरूप को प्रकट करने का अवसर उपलब्ध हो।” नकारात्मक स्वतंत्रता (Negative Aspect of Liberty)- प्राचीन विचारक नकारात्मक स्वतंत्रता को महत्व देते हैं। उनके अनुसार, स्वतंत्रता से अभिप्राय ‘बंधनों के अभाव’ से है अर्थात् मनुष्य पूर्ण रूप से स्वतंत्र है, उस पर किसी भी प्रकार का बंधन नहीं होना चाहिए।

उसकी किसी भी प्रकार की इच्छा पर रोक नहीं होनी चाहिए। वह जो कुछ भी करना चाहता है उसे करने देना चाहिए। वह राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक स्वविवेक से जो चाहे करता रहे। किसी भी प्रकार की मर्यादा के अभाव में ऐसी स्वतंत्रता को स्वेच्छाचार व उच्छृंखलता कहना अनुचित नहीं होगा।

जॉन लॉक, हर्बर्ट स्पेन्सर, एडम स्मिथ, मिल आदि स्वतंत्रता के नकारात्मक के समर्थक थे। स्वतंत्रता का नकारात्मक दृष्टिकोण निम्नलिखित विचारों पर आधारित है।

  1. स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव है।
  2. व्यक्ति पर राज्य द्वारा कोई नियंत्रण नहीं होना चाहिए।
  3. वह सरकार सर्वोत्तम है जो कम से कम शासन करें।
  4. सम्पत्ति और जीवन की स्वतंत्रता असीमित होती है।

सकारात्मक स्वतंत्रता (Positive Aspect of Liberty)- स्वतंत्रता का अर्थ नियंत्रणों का अभाव नहीं अपितु उचित नियंत्रण का होना है। वास्तविक स्वतंत्रता वह है, जिसमें मनुष्य दूसरों को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचाए बिना अपनी उन्नति करने में समर्थ होता है। वास्तविक स्वतंत्रता की दशा में मनुष्य को स्वेच्छापूर्वक कार्य करने का अवसर मिलता है बशर्ते कि उसका कार्य दूसरों की स्वतंत्रता में बाधा ना डालता हो या दूसरों को कोई नुकसान न पहुचाता हो।

इस वास्तविक स्वतंत्रता की सत्ता के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्यों के कृत्यों को मर्यादित किया जाए। अमर्यादित होने की दशा में एक मनुष्य की स्वतंत्रता दूसरे मनुष्य की स्वतंत्रता में बाधक हो सकती है। स्वतंत्रता को मर्यादित करने के लिए जो व्यवस्था की जाती है वह सब मनुष्यों के लिए एक समान होती है। अतः समता या एक समानता वास्तविक स्वतंत्रता की आवश्यक विशेषता है।

स्वतंत्रता के सकारात्मक रूप को 20वीं शताब्दी के उदारवादी विचारकों ने महत्व दिया। उनके अनुसार सच्ची स्वतंत्रता विवेक के अनुसार कान करने में हैं। 19वीं शताब्दी के प्रमुख लेखक काण्ट (Kant) फिक्टे टी.एच. ग्रीन आदि थे। 20वीं शताब्दी के प्रमुख विचारक-मैकाइव (Maciver), लास्की (Laski) तथा बार्कर थे।

काण्ट के अनुसार राज्य एक बुराई न होकर भलाई का एक आवश्यक उपकरण है। राज्य के कानून स्वतंत्रता के विरोधी नहीं बल्कि स्वतंत्रता के पोषक है, फिक्टे के अनुसार- “मनुष्य को उन सब कार्यों को करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए जो नीति व विवेक के अनुकूल हो।” रूसो और ग्रीन का मत था कि सच्ची स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के अनुसार कार्य करने में है। लास्की और मैकाइवर स्वतंत्रता के सकारात्मक सिद्धान्त के प्रमुख समर्थक हैं।

उनका कहना है कि स्वतंत्रता केवल बंधनों का अभाव नहीं है। मनुष्य समाज में रहता है औरसमाज का हित ही उसका हित है। समाज हित के लिए सामाजिक नियमों तथा आचरणों द्वारा नियंत्रित रहकर व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के अनुसार प्राप्ति ही स्वतंत्रता है। सकारात्मक स्वतंत्रता की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. स्वतंत्रता का अर्थ बंधनों का अभाव नहीं है।
  2. स्वतंत्रता और राज्य के कानून परस्पर विरोधी नहीं है।
  3. स्वतंत्रता का अर्थ उन सामाजिक परिस्थितियों का विद्यमान होना है जो व्यक्ति के विकास में सहायक हों।
  4. स्वतंत्रता अधिकारों के साथ जुड़ी हुई है। जितनी अधिक स्वतंत्रता होगी, उतने अधिक अधिकार होंगे। अधिकारों के बिना व्यक्ति को स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकती।

भारतीय संविधान में दी गयी छ: स्वतंत्राओं का वर्णन

भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में निम्नलिखित स्वतंत्रताएं दी गयी हैं-

(i) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of speech and expression)- अनुच्छेद 19 द्वारा नागरिकों को भाषण, लेखन, चलचित्र अथवा अन्य किसी माध्यम से अपने विचारों को प्रकट करने की स्वतंत्रता प्राप्त है।

44 वें संशोधन द्वारा संविधान में एक नया अनुच्छेद 361-A जोड़ा गया जिसके अनुसार समाचार-पत्रों को संसद, विधानमण्डलों की कार्यवाही प्रकाशित करने की पूर्ण स्वतंत्रता होगी, परन्तु राज्य को अधिकार है कि देश की अखंडता, सुरक्षा, शान्ति, नैतिकता, न्यायालयों के सम्मान और विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बंधों को ध्यान में रखते हुए इन अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

(ii) शांतिपूर्ण ढंग से बिना हथियारों के सभा-सम्मेलन (Freedom to assemble peace- fully and without arms)- नागरिकों को शांतिपूर्ण तरीके से एकत्रित होने की स्वतंत्रता है परन्तु सुरक्षा की दृष्टि से उस पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

(iii) संघ बनाने की स्वतंत्रता (Freedom to form Association)- नागरिकों को संघ बनाने की पूर्ण स्वतंत्रता है। सुरक्षा की दृष्टि से इस पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

(iv) भ्रमण की स्वतंत्रता-(Right to move freely)- नागरिकों को देश की सामाओं के भीतर कहीं भी घुमने-फिरने की स्वतंत्रता है, परन्तु सार्वजनिक हितों की दृष्टि से इस पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

(v) कहीं पर भी बसने की स्वतंत्रता (Freedom to reside in any part of India)- नागरिकों को देश के किसी भाग में निवास करने और बस जाने की स्वतंत्रता है, परन्तु सार्वजनिक हित और जनजातियों की रक्षा के लिए इस अधिकार पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

(vi) व्यवसाय अपनाने की स्वतंत्रता (Freedom to practice any profession)- नागरिकों को अपना कोई भी व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता है, पर सार्वजनिक हित में इस पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

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