मानव अधिकारों को परिभाषित कीजिए तथा मानव अधिकारों के महत्व की विवेचना कीजिए – Sab Sikho

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आज के इस पोस्ट में मानव अधिकारों को परिभाषित किया गया है तथा मानव अधिकार के महत्व की विवेचना की गई है तो इसकी जानकारी आपको विस्तार से नीचे बताई गई है ऑफिस से पूरा जरूर पढ़ें।

मानव अधिकारों तथा मानव अधिकारों के महत्व की विवेचना

मानव अधिकारों को परिभाषित कीजिए तथा मानव अधिकारों के महत्व की विवेचना कीजिए - Sab Sikho
मानव अधिकारों को परिभाषित कीजिए तथा मानव अधिकारों के महत्व की विवेचना कीजिए – Sab Sikho

मानव अधिकारों को परिभाषित करें

मानव अधिकारों की परिभाषा-मानव अधिकारों को विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया गया है। सर्वमान्य अर्थ में, मानव अधिकार वे अधिकार हैं जो मूलतः मानव अस्तित्व, कल्याण, मानव गरिमा एवं मानवता के सम्मान से सम्बद्ध होते हैं। वे अति अल्प अधिकार होते हैं जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति को अन्य किसी धारणा की अपेक्षा मानव समाज में एक सदस्य के रूप में प्रयोग करना चाहिए।

अवधारणा के रूप में ‘मानव अधिकार’ शब्द के दो अर्थ होते हैं –

(i) ये अन्तर्निहित एवं अपृथकनीय अधिकार है जो मानव को प्राणी के रूप में मिले हुए हैं। ये नैतिक अधिकार हैं जो प्रत्येक मानव प्राणी को मानवता के नाते प्राप्त हैं। इनका लक्ष्य व्यक्तियों की गरिमा को बनाये रखना है।

(ii) द्वितीय अर्थ कानूनी अधिकारों से जुड़ा है जो राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के होते हैं। आधुनिक विश्व में जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं व्यक्ति की गरिमा मानव अधिकार के अंग है। मानव अधिकार सभी समाजों में बिना भेदभाव के प्रचलित होते हैं।

मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अर्थ की व्याख्या

मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा का अर्थ- 1945 में मानव अधिकारों की विषयवस्तु को स्पष्ट करने के लिए मानव अधिकार, संयुक्त राष्ट्र आयोग -(United Nations Commission on Human Rights) की स्थापना की गयी। इसने अधिकारों का अन्तर्राष्ट्रीय विधेयक प्रस्तुत किया।

इसकी स्वीकृति के लिए महासभा के पास भेजा गया। 10 दिसंबर, 1948 को महासभा ने विधेयक को मानवाधिकारों की सार्वजनिक घोषणा के रूप में घोषित किया। इसीलिए 10 दिसंबर को सम्पूर्ण विश्व में ‘मानवाधिकार दिवस’ के नाम से जाना जाता है।

इस घोषणा को सभी देशों ने सभी लोगों के लिए सामान्य स्वर के रूप में अपनाया। यहां तक कि इसे उन सदस्यों ने भी स्वीकार किया जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य नहीं थे। महासभा ने भी इसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया। इसमें सभी प्रकार के नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार यथा आर्थिक-सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को शामिल किया गया।

मानव अधिकारों के महत्व की विवेचना कीजिए

मानव अधिकारों का महत्व मानव अधिकारों का महत्व निम्नलिखित दृष्टियों से है-

(i) यह मानव परिवार के सभी सदस्यों की सामान्य समझ का उल्लेख करता है एवं अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों के लिए उत्तरदायित्वों का निर्धारण करता है।

(ii) इन मानव अधिकारों का अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग में भी महत्वपूर्ण स्थान है।

(iii) मानव अधिकारों पर राष्ट्रीय सीमाओं का कोई नियंत्रण नहीं होता और ये राष्ट्रवादी मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

(iv) मानव अधिकारों ने अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर ली है। इसलिए राज्य या अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय का उल्लंघन करने पर उसकी पर्याप्त निन्दा की जाती है।

मानव अधिकारों की घोषणा के लिए परिस्थितियाँ

मानव अधिकार की घोषणा के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ-

(i) पुनर्जागरण की घटना और ज्ञान की पिपासा ने लोगों का ध्यान मानव अधिकारों की और आकर्षित किया।

(ii) मानव अधिकारी की घोषणा के उदय के लिए मानवतावाद भी उत्तरदायी है। मानवतावाद व्यक्ति की वांछनीय महत्ता एवं गरिमा पर बल देता है।

(iii) मानव अधिकारों की घोषणा के लिए स्वतंत्रता की ‘अमरीकी घोषणा’ एवं व्यक्ति तथा नागरिकों के अधिकारों के लिए ‘फ्रांसीसी घोषणा’ भी उत्तरदायी है।

(iv) लोग स्वेच्छाचारी शासनों का अंत, लोकतांत्रिक राजनीति की स्थापना एवं व्यक्ति की स्वतंत्रताओं का संरक्षण करना चाहते थे।

(v) 19वीं शताब्दी में समाजवादी आंदोलन ने मानव अधिकारों की घोषणा के लिए भूमिका तैयार कर दी।

मानव अधिकार दिवस कब और क्यों मनाया जाता है ?

मानव अधिकार दिवस प्रतिवर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है, क्योंकि 10 दिसंबर, 1948 को सुयक्त राष्ट्र की महासभा ने सभी लोगों एवं सभी राष्ट्रों के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति के समान स्तरों के रूप में मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को सर्वसम्मति से अपनाया।

भारत मानव अधिकारों का प्रबल समर्थक क्यों है?

मानव अधिकार वे अधिकार होते हैं जो प्रत्येक मनुष्य को मानव होने के नाते मिलने ही चाहिए। ये अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को जाति, धर्म, भाषा आदि भेद के बिना मिलने चाहिए। भारत इन मानव अधिकारों का प्रबल समर्थक है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

1. भारत का यह मानना है कि नवीन युग में कोई भी स्वतंत्र व लोकतांत्रिक देश मनुष्य अधिकारों के बिना न तो उन्नति कर सकता है और न ही उस देश में अमन स्थापित रह सकती है।

2. मानव अधिकार ऐसे अधिकार है जो कि मानव की उन्नति व प्रगति के लिए अति आवश्यक व महत्वपूर्ण है।

3. भारत विश्व शांति तथा मानवता के उत्थान में विश्वास रखता है इसलिए वह मानव अधिकारों का प्रबल समर्थक हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका तथा फ्रांस द्वारा मानव अधिकारों का समर्थन

अमेरिका के स्वतंत्रता घोषणा-पत्र (1776) में व्यक्ति के जन्मजात अधिकारों, जीवन, स्वतंत्रता तथा सुख-शांति का उल्लेख किया गया है। बाद में अमेरिका के अधिकार-पत्र में अनेक अधिकारों को कानूनी संरक्षण प्रदान किया गया है।

इसी प्रकार फ्रांस में भी मानव और नागरिकों के अधिकारों की घोषणा की गई है। 19वीं शताब्दी में समाजवादी आन्दोलन ने आर्थिक न्याय के लिए मानव अधिकारों का जोरदार समर्थन किया।

मानव अधिकार से सम्बंधित पाश्चात्य दृष्टिकोण पर टिप्पणी

यूनानी दार्शनिक सुकरात ने विचारों की स्वतंत्रता के लिए विष का प्याला पिया। बाइबिल (ईसाइयों की धार्मिक ग्रन्थ) में कहा गया है, “अपने समान ही अपने पड़ोसी से भी प्यार करो।”(Love thy neighbor as the self) इस उक्ति से स्पष्ट है कि बाइबिल जैसा धर्म-ग्रन्थ भी मानव अधिकारों को मान्यता देता है।

इस प्रकार पाश्चात्य दर्शनशास्त्रों में भी मानव अधिकारों का उल्लेख हुआ है, परन्तु व्यावहारिक रूप में पाश्चात्य राजनीति दर्शन द्वारा मानव अधिकारों की मान्यता 20वीं शताब्दी में मिली है। जॉन लॉक ने मानव के तीन अधिकारों-जीवन, स्वतंत्रता और सम्पति को प्राकृतिक अधिकार माना था। 

मैंने इस मानव अधिकारों को विस्तार से बताने की कोशिश की है तो मुझे उम्मीद है कि आप लोगों को यह पोस्ट अच्छा लगा होगा और अगर अच्छा लगा है तो इसे शेयर जरूर करें और भी इसी तरह के पोस्ट पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पोस्ट को पढ़ सकते हैं, बहुत-बहुत धन्यवाद।

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