मानव अधिकारों, निरस्त्रीकरण और अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के आपसी सम्बंधों का विवेचन कीजिए – Sab Sikho

Rate this post

आज के इस आर्टिकल में मानव अधिकारों, निरस्त्रीकरण, और अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के आपसी संबंधों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है जो निम्नलिखित है आप इसे जरूर पढ़ें।

मानव अधिकारों, निरस्त्रीकरण और अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के आपसी सम्बंध और अधिकार

मानव अधिकारों, निरस्त्रीकरण और अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था

मानव अधिकारों से अभिप्राय उन अधिकारों से है जो कि सभी मनुष्यों को मानव होने के नाते मिलने ही चाहिए। मानव अधिकारों का घोषणा-पत्र संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने 10 दिसम्बर, 1948 ई. को स्वीकार किया। इस घोषणा-पत्र के द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की सरकारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने नागरिकों के इन अधिकारों का आदर करेंगी।

संक्षेप में निःशस्त्रीकरण का अर्थ है मानवता का संहार करने वाले अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण पर प्रतिबंध लगाना, क्योंकि यदि भयानक आणविक अस्त्रों पर प्रतिबंध न लगाया गया तो इन शास्त्रों के द्वारा किसी भी दिन पूरे विश्व की समाप्ति हो सकती है। आधुनिक विश्व के विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था के वर्तमान सम्बंधों का नाम नयी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था है।

संक्षेप में इस व्यवस्था के अनुसार विकसित देश विकासशील तथा अविकसित देशों को आर्थिक और तकनीकि सहायता प्रदान करते हैं। वास्तव में मानव अधिकारों, निरस्त्रीकर और नयी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का बहुत गहरा सम्बंध है।

मानव अधिकारों का तभी लाभ हो सकता है जब विश्व में शान्ति स्थापित रहे और विश्व में तभी शान्ति स्थापित रह सकती है जब घातक हथियारों की होड़ समाप्त हो और उसके लिए निरस्त्रीकरण आवश्यक है। निरस्त्रीकरण से बचाया गया धन विकासशील देशों के लोगों की उन्नति और विकास के लिए नयी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था द्वारा प्रयोग में लाया जा सकता है।

मानव अधिकारों के घोषणा-पत्र में सम्मिलित

मानव अधिकारों की सूची में निम्नलिखित 20 अधिकारों को सम्मिलित किया गया है –

1. जीवन की सुरक्षा का अधिकार

2. दासता व बन्धुआ मजदूरी (श्रम मजदूरी) से स्वतंत्रता (आज़ादी) का अधिकार ।

3. बिना कारण बताए गिरफ्तार किए जाने से स्वतंत्रता का अधिकार।

4. स्वतंत्र न्यायपालिका से न्याय प्राप्त करने की स्वतंत्रता का अधिकार ।

5. दोष सिद्धि से पहले दोष-रहित समझे जाने का अधिकार ।

6. पत्र-व्यवहार की स्वतंत्रता का अधिकार।

7. कहीं भी आने-जाने या घुमने-फिरने का अधिकार।

8. विवाह करने व पारिवारिक जीवन का अधिकार ।

9. राष्ट्रीयता का अधिकार।

10. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार।

11. सम्पति का अधिकार।

12. विचार-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार।

13. शान्तिपूर्ण तरीके से सभाओं और जुलूसों में शामिल होने का अधिकार ।

14. मतदान व प्रशासन में भाग लेने का अधिकार।

15. सामाजिक सुरक्षा का अधिकार ।

16. काम करने व उसकी अपेक्षित मजदूरी पाने का अधिकार।

17. एक जैसे कार्य करने के लिए एक जैसा वेतन पाने का अधिकार ।

18. अवकाश पाने का अधिकार ।

19. अपना जीवन स्तर ऊँचा उठाने का अधिकार।

20. शिक्षा प्राप्त करने तथा समाज में सांस्कृतिक जीवन जीने का अधिकार।

मानव अधिकार प्रसंविदा पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए

समूचे संसार में घोषणा पत्र में निहित अधिकारों की प्राप्ति के लिए जो आन्दोलन चल रहे हैं उनकी सफलता के लिए आवश्यक है कि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कार्यवाहियां हों। अतः संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकारों का राष्ट्रीय सरकारों द्वारा पालन करवाने के उद्देश्य से मानव अधिकार आयोग को दो प्रसविदाएँ तैयार करने को प्रेरित किया-एक नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों के सम्बंध में और दूसरी आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों के सम्बंध में।

मानव अधिकारों के सम्बंध में विश्वव्यापी लोकमत तैयार करने के लिए चार्टर के अनुच्छेद 60 के अन्तर्गत महासभा को कुछ अधिकार सौंपे गए हैं। उसी के माध्यम से कुछ अधिकारों की कार्यान्वित का उत्तरदायित्व केवल संयुक्त राष्ट्र संघ पर ही नहीं है, यह अन्य संस्थाओं पर भी निर्भर है। 4 नवम्बर, 1950 को यूरोप की परिषद् ने मानव अधिकारों की यूरोपीय संधि को लागू किया।

पाश्चात्य देशों एवं अमेरिका ने मानव अधिकारों के संदर्भ में साफ नियत से कार्य नहीं किया है। एशिया और अफ्रीका के देशों में पश्चिमी लोग पक्षपात-पूर्ण रवैये का प्रयोग करते रहे हैं। मानव अधिकारों के मामले में अमेरिका द्वारा कश्मीर, अफगानिस्तान, इराक व अन्य देशों में दोहरी नीति का पालन किया जाता है। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र अभी तक मानव अधिकारों का पालन कराने का प्रभावशाली अभिकरण नहीं बन पाया।

मानव अधिकारों के क्रियान्वयन का मूल्यांकन कीजिए

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित मानव अधिकारों का जहां इस संस्था द्वारा प्रचार किया जा रहा है वहां विश्व के अनेक राष्ट्रीय संविधानों में इनको अपनाया गया है। मानव अधिकारों के दुरुपयोग के कारण आन्दोलन तथा हड़तालें हो रही हैं जिससे अव्यवस्था फैल रही है।

दूसरी ओर मानव अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है जिससे लोगों में असंतोष फैल रहा है। कानूनी व्यवस्था मानव अधिकारों के संरक्षण में असफल रही है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित मानव अधिकारों का लक्ष्य एक आदर्श स्तर को प्राप्त करना है। राज्यों द्वारा भी इनके संरक्षण की कानूनी व्यवस्था तथा न्यायालयों की स्थापना की गई है, परन्तु इन अधिकारों के संदर्भ में अधिकार और कर्तव्यों के माध्य आवश्यक सामंजस्य नहीं किया गया है।

मानव अधिकारों के सफल क्रियान्वयन के लिए सुझाव

मानव अधिकारों के सफल क्रियान्वयन के लिए सुझाव (Suggestions for the successful implementation of Human Rights)-

(1) बच्चों को प्रारंभ से ही आध्यात्मिक शिक्षा दी जाए और उन्हें मानवीय मूल्यों की जानकारी के साथ-साथ मानव अधिकारों का ज्ञान कराया जाए।

(2) लोगों को कर्तव्य परायणता के लिए प्रशिक्षित किया जाए।

(3) वर्गहित या व्यक्तिगत हितों की अपेक्षा समाजहित और राष्ट्रहित की शिक्षा के साथ-साथ मानवीय हितों पर बल दिया जाए। इन सुझावों के द्वारा व्यक्तियों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आयेगा।

वे अपने हितों को महत्व देकर समाज, राष्ट्र तथा मानवता के कल्याण के विषय में सोचने लगेंगे। वैश्वीकरण (Globalization) के इस युग में तो इस बात का और भी अधिक महत्व है। सारे विश्व में शान्ति स्थापना के लिए यह आवश्यक है कि मानव अधिकारों का हनन न किया जाए। आज विश्व के अधिकांश देश राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से जुड़े हुए हैं। अतः समस्त विश्व में मानव अधिकारों का पालन किया जाना चाहिए।

उम्मीद करता हूं कि आप लोगों को आज के इस पोस्ट में मानव अधिकारों, निरस्तीकरण और अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जानकारी मिल गई होगी और यह पोस्ट पढ़ने में आप लोगों को बहुत ही अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें और हमें कमेंट में भी बताएं, बहुत-बहुत धन्यवाद।

Interesting Posts, READ More:

समानता शब्द से आप क्या समझते हैं? राजनैतिक समानता

न्याय के किन्हीं दो पक्षों का उल्लेख करें

न्याय की अवधारणा के विविध रूपों का वर्णन कीजिए

मानव अधिकारों को परिभाषित कीजिए

Leave a Comment