न्याय के किन्हीं दो पक्षों का उल्लेख करें, कानूनी तथा नैतिक न्याय में क्या संबंध है? – Sab Sikho

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दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम जानेंगे कि न्याय के दो पक्षों के बारे में और कानूनी तथा नैतिक न्याय में क्या संबंध है जो नीचे विस्तार से बताया गया है।

न्याय के किन्हीं दो पक्षों का उल्लेख – कानूनी तथा नैतिक न्याय में संबंध

न्याय के किन्हीं दो पक्षों का उल्लेख करो

न्याय अंग्रेजी शब्द ‘Justice‘ का हिन्दी रूपांतर है। Justice शब्द ‘लैटिन‘ भाषा के शब्द Jus से बना है जिसका अर्थ होता है बंधन या बांधना (Bind or Tie) । जिसका अभिप्राय यह है कि ‘न्याय’ उस व्यवस्था का नाम है जिसके द्वारा व्यक्ति के पारस्परिक सम्बंधों का उचित एवं सामंजस्यपूर्ण संयोजन किया जाता है।

1. राजनीतिक न्याय (Political Justice)- न्याय का एक पक्ष राजनीतिक न्याय माना जाता है। अरस्तु ने न्याय को एक प्रकार का वितरण सम्बंधी न्याय (Distributive Justice) बताया था जिसका अर्थ राजनीतिक समाज में व्यक्ति को उसका उचित स्थान प्रदान करना था।

राजनीतिक न्याय का तात्पर्य व्यक्ति का शासन में भाग लेना, चुनाव में मतदान करना, योग्यता के अनुसार राजकीय पद ग्रहण करना आदि से है। इन अधिकारों की उचित व्यवस्था सबके लिए उचित एवं निष्पक्ष रूप से होने की स्थिति को हम राजनीतिक न्याय की व्यवस्था कहते हैं। लोकतंत्र की सफलता के लिए राजनीतिक न्याय का होना आवश्यक है।

2. कानूनी न्याय (Legal Justice)- कानूनी न्याय से अभिप्राय है कानून न्याय-संगत हो अर्थात समान व्यक्तियों के लिए समान कानून हो । कानून जनता के प्रतिनिधियों द्वारा बनाये जाएं और उनका औचित्य समय-समय पर सर्वोच्च न्यायालयों द्वारा परखा जाए। न्याय निष्पक्ष, सरल व सस्ता हो ।

कानूनी तथा नैतिक न्याय में क्या संबंध है?

कानूनी न्याय तथा नैतिक न्याय में सम्बंध (Relationship between Legal and Moral Justice- कानूनी तथा नैतिक न्याय में घनिष्ठ असम्बंध है। प्राचीन दार्शनिकों ने इस दृष्टिकोण का समर्थन किया कि न्याय नैतिकता पर आधारित होना चाहिए। अभी तक एक सीमा तक न्याय नैतिकता पर आधारित है। परन्तु दोनों एक नहीं है और दोनों में अन्तर पाया जाता है।

कानूनी न्याय का सम्बंध उन सिद्धांतों और कार्यविधियों से है जो किसी कानूनों, रीति-रिवाजों, पूर्व निर्णयों तथा मानवीय अभिकरण द्वारा निर्मित कानूनों से होता है। नैतिक न्याय वह होता है जिसके द्वारा हमें पता चलता है कि क्या ठीक है और क्या गलत है? मनुष्य के रूप में हमारे क्या अधिकार है ? हमारे क्या कर्तव्य हैं? कानूनी न्याय इन अधिकारों और कर्त्तव्यों को सुरक्षा प्रदान करता है।

न्याय तथा नैतिकता में क्या संबंध है?

न्याय तथा नैतिकता में सम्बंध (Relationship Between Justice and Morality)-

न्याय तथा नैतिकता में घनिष्ठ सम्बंध है। न्याय की अवधारणा नैतिकता पर आधारित है। नैतिक मूल्यों पर ही हम यह निश्चित करते हैं कि क्या न्यायपूर्ण है और क्या न्यायपूर्ण नहीं है। न्याय तथा नैतिकता को सीमित अर्थो में लिया जाये तो यह दोनों एक-दूसरे से अलग-अलग दिखाई पड़ते हैं।

ऐसा तब होता है जब नैतिकता मूल्यों व न्याय का अर्थ समाज के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बंधित लिया जाये । वैधानिक रूप से न्याय स्थापित करने के लिए कानून एक माध्यम है। कानून सदा नैतिकता पर आधारित हो, यह आवश्यक नहीं है।

कानून समाज में न्याय स्थापित करने में सक्षम होते हुए भी नैतिक मूल्यों के आधार पर सही हो, यह भी अनिवार्य नहीं है। इस प्रकार नैतिकता व न्याय दोनों ही अंतिम मानवीय मूल्यों का ही प्रतिरूप है, इसलिए दोनों घनिष्ठ रूप से सम्बंधित हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि न्याय का आधार विवेक सत्ता तथा नैतिकता है। नैतिकता का विवेकपूर्ण रूप से सत्ता द्वारा नियमित किया जाना ही न्याय कहलाता है।

भारतीय राजनीतिक चिंतन में न्याय की धारणा समझाईए

भारतीय राजनीतिक चिन्तन में राज्य की व्यवस्था के लिए न्याय को अत्यंत महत्वपूर्ण माना है। मनु, कौटिल्य, बृहस्पति, शुक्र, भारद्वाज एवं सोमदेव आदि अनेक महान भारतीय राजनीतिक चिन्तक हुए हैं।

इनकी विशेषता यह रही है कि उन्होंने न्याय के विषय में उस कानूनी दृष्टिकोण को प्राचीनकाल में ही अपना लिया था, जिसे पाश्चात्य जगत के विचारक आधुनिक युग में आकर ही अपना सके हैं। कौटिल्य ने कहा है, “न्याय की सुव्यवस्था राज्य का प्राण है जिसके बिना राज्य जीवित नहीं रह सकता।”

भारतीय संविधान में न्याय की अवधारणा पर एक टिप्पणी

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तीनों प्रकार के न्याय की गारंटी दी गयी है। राजनीतिक न्याय सुलभ कराने के लिए समाजवाद, धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की गयी है। आर्थिक न्याय की व्यवस्था के लिए संविधान में नीति-निर्देशक तत्वों का वर्णन है जो राज्य को अनेक कार्य करने का निर्देश देते हैं।

समान कार्य के लिए स्त्री-पुरुष दोनों को समान वेतन, बाल श्रमिकों का शोषण रोकना, बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाना, वृद्धावस्था या बीमारी की अवस्था में राजकीय सहायता आदि। सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए अनुच्छेद 14 के अनुसार में सभी नागरिक कानून के समक्ष समान हैं।

अनु.- 15 में धर्म, मूलपंथ, जाति-लिंग या जन्म के आधार पर भेदभाव की मनाही। अनु.-16 में सब नागरिकों को राज्य के अधीन पदों पर नियुक्ति का समान अधिकार। अनुच्छेद -17 द्वारा छुआछूत की समाप्ति कर दी गई है। अनुच्छेद 24 व 25 में बेगार व शोषण को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है।

सामाजिक न्याय का अर्थ और महत्व बताइये

सामाजिक न्याय का अर्थ है कि नागरिकों के बीच सामाजिक दृष्टिकोण से किसी प्रकार का भेदभाव न किया जाए। श्री गजेन्द्र गड़कर के अनुसार सामाजिक न्याय का अर्थ सामाजिक असमानताओं को समाप्त करके सामाजिक क्षेत्र में व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करने से है।

सामाजिक न्याय की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

1. धर्म, जाति, रंग तथा लिंग आदि के आधार पर भेदभाव की समाप्ति।

2. सार्वजनिक स्थानों के प्रयोग में भेदभाव की समाप्ति ।

3. राज्य के हस्तक्षेप की सीमा अर्थात् रीति-रिवाज या धार्मिक विश्वास जैसे व्यक्तिगत मामलों में राज्य को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। सामाजिक न्याय का महत्व-आधुनिक युग में सामाजिक न्याय का बहुत महत्व है क्योंकि समाज के अन्तर्गत सबको उचित स्थान प्राप्त होता है। सभी लोग उन्नति करने लगते हैं।

दोस्तों न्याय से संबंधित और इसके कानून तथा नैतिक न्याय के संबंधों के बारे में आप लोगों को जानकारी कैसी लगी और अगर अच्छी लगी है तो हमें कमेंट में जरूर बताएं और इसी तरह के पोस्ट पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं, बहुत-बहुत धन्यवाद।

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