स्वतंत्रता की परिभाषा दीजिए तथा राजनतिक स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है – Sab Sikho

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इस पोस्ट के माध्यम से हम जानेंगे की स्वतंत्रता क्या है और राजनीतिक स्वतंत्रता से हम क्या समझते हैं और भी बहुत सारी जानकारी दी गई है आप इसे जरूर से पढ़ें।

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स्वतंत्रता की परिभाषा तथा राजनतिक स्वतंत्रता से अभिप्राय

स्वतंत्रता की परिभाषा दीजिए

स्वतंत्रता जिसे अंग्रेजी में लिबर्टी (Liberty) कहते हैं, लैटिन भाषा के लाइबर (Liber) शब्द से बनी है, जिसका अर्थ होता है ‘बंधनों का अभाव’।

इस प्रकार शब्द-उत्पत्ति के आधार पर स्वतंत्रता का अभिप्राय है ‘किसी भी बाहरी दबाव से प्रभावित हुए बिना सोचने-विचारने और सोचे हुए काम को करने की शक्ति। ‘परंतु इस प्रकार की चरम स्वतंत्रता सदा संभव नहीं है।

लास्की के द्वारा दी गई स्वतंत्रता की परिभाषा

लास्की (Laski) के अनुसार- “आधुनिक सभ्यता में मनुष्यों की व्यक्तिगत प्रसन्नता की गारण्टी के लिए जो सामाजिक परिस्थितियां आवश्यक हैं उनके अस्तित्व में किसी प्रकार के प्रतिबंध का अभाव ही स्वतंत्रता है।”

इसी बात को लास्की ने इस प्रकार भी प्रकट किया है- “स्वतंत्रता का अभिप्राय यह है कि उस वातावरण की उत्साहपूर्वक रक्षा की जाए जिसमें कि मनुष्यों को अपना सर्वोत्तम रूप प्रकट करने का अवसर मिलता है।”

राजनतिक स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है

राजनीतिक स्वतंत्रता से अभिप्राय ऐसी स्वतंत्रता है जिसे अनुसार किसी राज्य के नागरिक अपने यहाँ की सरकार में भाग ले सकें। नागरिकों के मताधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, आवेदन देने का अधिकार तथा सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किए जाते हैं।

रंग, जाति, नस्ल, धर्म व लिंग आदि के आधार पर किसी नागरिक को उसके राजनीतिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जाता है।

स्वतंत्रता के किन्हीं दो प्रकारों का वर्णन कीजिए

स्वतंत्रता के कई प्रकार होते हैं। जैसे- (1) राजनीतिक स्वतंत्रता (2) आर्थिक स्वतंत्रता (3) धार्मिक स्वतंत्रता (4) नागरिक स्वतंत्रताएं (5) प्राकृतिक स्वतंत्रता (6) राष्ट्रीय स्वतंत्रताएं (7) निजी स्वतंत्रता ।

क्या प्रत्येक कानून स्वतंत्रता का समर्थक है?

यद्यपि कानून और स्वतंत्रता का घनिष्ट सम्बन्ध होता है, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रत्येक कानून स्वतंत्रता का समर्थक है। ब्रिटिश काल में अनेक कानून भारतीयों की स्वतंत्रता को कुचलने के लिए ही बनाए गए थे।

राजनीतिक स्वतंत्रता के दो लक्षण बताइए

राजनीतिक स्वतंत्रता के दो लक्षण (Two features of Political Liberty)

1. प्रत्येक नागरिक को मतदान का अधिकार होता है।

2. प्रत्येक नागरिक को सरकारी नौकरी पाने का अधिकार होता है।

आर्थिक स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है?

आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ है, व्यक्ति की बेरोजगारी तथा भूख से मुक्ति। लास्की के अनुसार, “आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी जीविका कमाने के लिए समुचित सुरक्षा तथा सुविधा प्राप्त हो ।”

सकारात्मक स्वतंत्रता से आप क्या समझते हैं ?

गैटेल के अनुसार स्वतंत्रता के दो पक्ष होते हैं। सकारात्मक पक्ष के अनुसार व्यक्ति को अपने विकास के लिए समस्त साधनों एवं अवसरों की उपलब्धि ही स्वतंत्रता है। नकारात्म पक्ष के अनुसार स्वतंत्रता का अर्थ है बंधनों का अभाव ।

मैकेन्जी के अनुसार-“स्वतंत्रता समस्त प्रतिबंधों का अभाव नहीं अपितु अविवेकपूर्ण प्रतिबंधों के स्थान पर विवेकशील प्रतिबंधों की व्यवस्था है।”

निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी :

(क) नैतिक स्वतंत्रता (ख) नकारात्मक स्वतंत्रता ।

(क) नैतिक स्वतंत्रता (Moral liberty)- काण्ट (Kant) के अनुसार नैतिक स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्तिंगत स्वायत्तता, ताकि हम अपने आप मालिक बन सकें। नैतिक स्वतंत्रता केवल राज्य में ही प्राप्त हो सकती है क्योंकि राज्य ही उसके परिस्थितियों की स्थापना करता है जिनमें मनुष्य नैतिक रूप से उन्नति कर सकता है।

(ख) नकारात्मक स्वतंत्रता (Negative Aspect of Liberty) स्वतंत्रता के नकारात्मक पहलू का अर्थ है कि व्यक्ति पर किसी प्रकार का बंधन न हो। हॉब्स के अनुसार-स्वतंत्रता का अर्थ बंधनों का अभाव है। मिल के अनुसार- व्यक्ति के जो कार्य स्वयं से संबंधित हैं उन पर किसी प्रकार का बंधन नहीं होना चाहिए।

परन्तु स्वतंत्रता की यह नकारात्मक अवधारणा अव्यवहारिक है। समाज में इस प्रकार की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती।

किसी व्यक्ति द्वारा स्वतंत्रता के उपभोग के लिए आवश्यक दशाएं

स्वतंत्रता का अर्थ है ‘प्रतिबंधों का अभाव, परन्तु सकारात्मक रूप में स्वतंत्रता का अर्थ व्यक्ति पर से उन प्रतिबंधों को हटाना जो अनैतिक और अन्यायपूर्ण हों। किसी व्यक्ति द्वारा स्वतंत्रता के उपभोग की दो आवश्यक दशाएं निम्नलिखित हैं-

1. स्वतंत्रता समाज के सभी व्यक्तियों को समान रूप से प्राप्त होनी चाहिए, समाज के एक वर्ग को स्वतंत्रता प्राप्त होने और दूसरे को प्राप्त न होने से स्वतंत्रता का उपभोग कठिन होता है।

2. जिनके पास राजसता है उनके द्वारा सत्ता का दुरुपयोग न हो। यदि किसी देश या समाज में ऐसा हो तो वहां के लोग स्वतंत्रता का उपभोग ठीक प्रकार से नहीं कर सकते।

स्वतंत्रता का निहितार्थ है जंजीर से मुक्ति, बन्दीकरण से मुक्ति,

स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्ति पर किसी भी प्रकार का राजनीतिक या सामाजिक दबाव नहीं होना चाहिए। जे.एस. मिल इसी प्रकार की स्वतंत्रता के समर्थक थे। परन्तु ऐसी पूर्ण स्वतंत्रता समाज में संभव नहीं। शासकों एवं अधिकारियों को भी कानून के अनुसार चलना पड़ता हैं। प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता तभी मिल सकती है जबकि उनके कार्यों पर सामाजिक हित में उचित प्रतिबंध भी हो ।

वास्तविक स्वतंत्रता अनुचित प्रतिबंधों का अभाव है, सभी प्रकार कानूनों तथा सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं। लॉक का कहना है, “जहां कानून नहीं वहां स्वतंत्रता नहीं (Where there is no law there is no freedom) इस प्रकार स्वतंत्रता अनुचित प्रतिबंधो का अभाव है, उनसे मुक्ति है।

दासता, बन्दीकरण तथा बेड़ियां ऐसे अनुचित प्रतिबंध हैं जिनके कारण व्यक्ति स्वतंत्रता का प्रयोग नहीं कर सकता। इसीलिए कहा गया है कि स्वतंत्रता के अर्थों में यह बात निहित है कि व्यक्ति को बेड़ियों से मुक्ति प्राप्त हो, बन्दी बनाए जाने के डर से मुक्ति प्राप्त हो, दासता की बेड़ियों से छुटकारा प्राप्त हो।

क्या स्वतंत्रता असीम है? व्याख्या कीजिए

बिना किसी बाधा के अपने व्यक्तित्व को प्रकट करने का नाम स्वतंत्रता है। परन्तु यदि प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वतंत्रता दे दी जाए तो समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी। एक-दूसरे की स्वतंत्रता में बाधा पहुंचेगी। असीमित स्वतंत्रता अपने आप में विरोधाभास है। सभ्य समाज में स्वतंत्रता बन्धन व कानूनों की सीमा में ही होनी चाहिए ।

जब भी स्वतंत्रता असीम हो जाती है तो वह नकारात्मक स्वतंत्रता बन जाती है और व्यक्ति के ऊपर किसी प्रकार का बंधन नहीं होता । इस प्रकार की स्वतंत्रता के अन्तर्गत व्यक्ति कुछ भी कर सकता है जिससे दूसरे व्यक्तियों की स्वतंत्रता नष्ट हो सकती है ।

अतः व्यक्ति को केवल ऐसे कार्य करने चाहिए, जिससे दूसरों की स्वतंत्रता पर चोट न पहुंचती हो । बार्कर ने लिखा है, “जिस प्रकार कुरूपता का न होना सुन्दरता नहीं है, उसी प्रकार बंधनों का न होना स्वतंत्रता नहीं है। “As beauty is not the absence of ugliness so liberty is not the absence of restraints.” -Barkar अतः स्वतंत्रता असीम नहीं हो सकती।

क्या कानून से स्वतंत्रता का रक्षक है?

प्रत्येक कानून से स्वतंत्रता की रक्षा होती है ऐसा आवश्यक नहीं है। ब्रिटिश काल के अनेक कानून भारतीय जनता की स्वतंत्रता को कुचलते थे। रौलेट एक्ट, सेफ्टी एक्ट, वर्नाकूलर प्रेस एक्ट आदि इस प्रकार के कानून बनाए गए थे जिनके विरूद्ध भारतीयों ने घोर संघर्ष किया।

गाँधी जी ने नमक कानून तोड़ने के लिए सत्याग्रह किया। यदि कानून जनता की भलाई के लिए बनाया जाय तो उससे स्वतंत्रता की रक्षा होती है। यदि कानून अच्छे हों तो जनता उनकी खुशी से पालन करती है, परन्तु यदि कानून जनता के हित में नहीं है तो ऐसे कानूनों का जनता सख्त विरोध करती है। स्वतंत्रता और प्रभुता के सामंजस्य से जो कानून बनते हैं वे अधिक अच्छे होते हैं।

गेटैल ने लिखा है- “प्रभुता की अधिकता से स्वतंत्रता का नाश होता है। वह अत्याचार में बदल जाती है। इसी प्रकार स्वतंत्रता की अति से अराजकता पैल जाती है और प्रभुता का नाश होता है।” कई बार मजदूरों की स्थिति में सुधार के लिए कानून बनाए जाते हैं। वे कानून स्वतंत्रता में बाधा नहीं पहुंचाते वरन् स्वतंत्रता के समर्थक होते हैं।

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